निसंदेह वाजपेयीजी आराध्यदेव श्रीराम की संकल्पशक्ति, योगीराज श्रीकृष्ण की राजनीतिक कुशलता एवं कूटनीति और आचार्य चाणक्य की निश्चयात्मिका बुद्धि के धनी व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्रसेवा हेतु अर्पित किया हैं। उनका तो उद्घोष है “हम देश के लिए जिएँगे और देश के लिए ही मरेंगे, भारत माता का कंकर-कंकर शंकर है, वहीं पानी की हर बूंद गंगाजल है”, उन्होनें अनेको बार कहा है कि “भारत के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर करने में गौरव और गर्व का अनुभव करूँगा”। अटल जी के भाषणों में ऐसा जादू होता था कि लोग उन्हें निरंतर घंटों सुनते ही रहना चाहते थे। उनकी वाणी में सदैव विवेक और संयम होता है। गम्भीर से गम्भीर बात को बात हँसी की फुलझड़ियों के बीच कह देने की विलक्ष्ण क्षमता उन्हीं में हैं। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे। कहते हैं कि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरूजी ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा था कि इनका भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है एवं एक दिन ये देश के सर्वोच्च पद पर पदासीन होगें क्योंकि इनमें प्रतिभावान राज नेता के सभी गुण मोजूद हैं “ | पूर्वी पाकिस्तान के विघटन एवं बंगलादेश देश के जन्म के समय अटलजी ने अपनी राजनेतिक प्रबल विरोधी इंदिराजी जी की सराहना करते हुए उन्हें माँ दुर्गा के समान बता कर एक कुशल एवं परिपक्व राजनेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया | गुजरात के साम्प्रदायिक दंगों के बाद प्रधानमंत्री बाजपेयी जी ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को राज धर्म के पालन करने की सीख दी थी |
वाजपेयीजी देश के चार प्रान्तों यथा उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली से सांसद चुने गये। इसके अलावा वे तीन बार प्रधानमंत्री बने यथा पहली बार 16-31 मई 1996, 1997 में दुबारा एवं 19 अप्रैल 1998 को पुनः तीसरी बार प्रधानमन्त्री बने |
वाजपेयीजी भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से थे | उन्होंने लम्बे समय तक पत्रकारिता करते हुए राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक के रूप में कार्य किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया | अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दोरान परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी की परवाह नहीं करते हुए राष्ट्र हित में 1998 में दुबारा परमाणु परीक्षण कर राजनेतिक परिपक्वता का परिचय दिया। स्मरणीय है कि उन्होंने इस परमाणु परीक्षण की अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की गुप्तचर एजेंसीयों को भनक तक नहीं लगने दी।
वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) सरकार के पहले गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने में बिना किसी समस्या के अपना कार्यकाल पूरा किया । विगत कई वर्षों से अपने गिरते स्वास्थ्य की वजह से भारतरत्न वाजपेयीजी वर्तमान राजनीति में सक्रिय नहीं हैं |
जन्म, बाल्यकाल और शिक्षा
वाजपेयीजी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था | पं. कृष्ण बिहारी के चार पुत्र अवध बिहारी, सदा बिहारी, प्रेम बिहारी, अटलबिहारी तथा तीन पुत्रियाँ विमला, कमला, उर्मिला हुईं। अटलजी की बी.ए. तक की शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। वहाँ के विक्टोरिया कॉलेज (आज लक्ष्मीबाई कॉलेज) से उन्होंने उच्च श्रेणी में बी.ए. उत्तीर्ण किया। वे विक्टोरिया कॉलेज के छात्र संघ के मंत्री और उपाध्यक्ष भी रहे। वादविवाद प्रतियोगिताओं में सदैव भाग लेते थे। ग्वालियर से आप उत्तरप्रदेश की व्यावसायिक नगरी कानपुर के प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र डी.ए.वी.कॉलेज आए। राजनीतिशास्त्र से प्रथम श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। एलएलबी की पढ़ाई को बीच में ही विराम देकर संघ के काम में लग गए।
प्रथम जेल यात्रा
बचपन से ही अटल जी की सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत दोहरी गुलामी में थी। राजतंत्र के प्रति जनमानस में आक्रोश था। सत्ता के विरुद्ध आंदोलन चलते रहते थे। सन् 1942 में जब गाँधी जी ने ‘अँग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहा था। अटलजी तो सबके आगे ही रहते थे। जब आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया तो पकड़-धकड़ होने लगी। अटलजी पुलिस की लपेट में आ गए। उस समय वे नाबालिग थे। इसलिए उन्हें आगरा जेल की बच्चा-बैरक में रखा गया। चौबीस दिनों की अपनी इस प्रथम जेलयात्रा के संस्मरण वे हँस-हँसकर सुनाते हैं। उन्होंने डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी , पण्डित दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख आदि नेताओं से राजनीति का पाठ पढ़ा था |
राजनीतिक जीवन
सन् 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा जिसमे उन्हें पराजय मिली, लेकिन उन्होंने अपना आत्मविश्वास नहीं खोया एवं उन्होंने सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में पुनः चुनाव लड़ा जिसमें विजयी होकर लोकसभा में पहुँचे। मोरारजी देसाई की सरकार में वाजपेयीजी सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे उन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक किया । अटलजी पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर देश को एवं हिदी को गौरवान्वित किया था।
1980 में जनता पार्टी से दोहरी सदस्यता के मामले के कारण जनसंघ के सदस्य गण जनता पार्टी से अलग हो गये और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। सन् 2004 में अपने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भयंकर गर्मी में वाजपेयीजी ने भारत उदय ( इण्डिया शाइनिंग) के नारे के साथ लोकसभा के चुनाव करवाये जिसमें भा०ज०पा० के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एन०डी०ए०) को विजय नहीं मिल सकी थी |
प्रधानमंत्री अटलजी की उल्लेखनीय सफलतायें
पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल
19 फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की थी, किन्तु कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ की वजह से पाकिस्तानी सेना व उग्रवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। अटल सरकार ने पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अंतर्राष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किंतु ठोस कार्यवाही करके भारतीय क्षेत्र को पाकिस्तान से मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरु किए गए संबंध सुधार के सारे प्रयास एक बार फिर समाप्त ही हो गए।
भारत भर के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना (अंगरेजी में- गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल प्रोजैक्ट या संक्षेप में जी क्यू प्रोजैक्ट) की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। ऐसा माना जाता है कि अटल जी के शासनकाल में भारत में जितनी सड़कों का निर्माण हुआ उतना सिर्फ शेरशाह सूरी के समय में ही हुआ था।
एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया।
राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये।
प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ :—–मेरी इक्यावन कविताएँ, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह), कैदी कविराय की कुण्डलियाँ, संसद में तीन दशक, अमर आग है, सेक्युलर वाद, राजनीति की रपटीली राहें,बिन्दु बिन्दु विचार आदि।
पुरस्कार
फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड (2015), (बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रदान ),2014 दिसम्बर में भारत रत्न से सम्मानित(2014),पद्म विभूषण (1992), लोकमान्य तिलक पुरस्कार (1993), श्रेष्ठ सासंद पुरस्कार(1994),भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार (1994)
सकलन कर्ता—डा. जे.के.गर्ग
सन्दर्भ—-विकीपीडिया,गूगलसर्च एवं मेरी डायरी के पन्ने
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