यह कैसा भारत-रत्न ?

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक- सचिन   तेंदुलकर   को  भारत-रत्न    क्या  मिला,  अब कई अन्य  विभूतियों  के  लिए  भारत-रत्न की मांग होने लगी है।  लोग पूछ रहे हैं कि जब आपने सचिन को यह सम्मान देने  के लिए उसकी  नियमावलि में संशोधन  कर दिया  तो  फिर  जो लोग  पहले  से  इस सम्मान के योग्य हैं, उन्हें  आप  क्यों    नहीं  दे  रहे   हैं?   सचिन को  क्या  आप इसीलिए   दे रहे हैं    कि  उनकी    लोकप्रियता  का  अप्रत्यक्ष लाभ आपको मिल जाए? सचिन भारत की युवा पीढ़ी में लोकप्रिय है। क्या यह सम्मान युवा मतदाताओं को  लुभाने के लिए दिया गया है?    इस तरह  का तर्क  शुद्ध  दलीय राजनीति से  प्रेरित लगता है  लेकिन  सचिन  पर     नहीं, इस सम्मान पर    प्रश्न-चिन्ह  लगाना अपने आप में अनुचित नहीं है।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पहला  प्रश्न तो यही है कि  सचिन  को  सम्मान देकर  आपने क्रिकेट-जैसे  घोर  सामंती और औपनिवेशिक  खेल को सम्मानित क्यों किया है?  इस खेल का इतिहास क्या है?  क्रिकेट अंग्रेजों का खेल है और अंग्रेजों के पूर्व गुलाम देशों में ही  यह खेला जाता है।   दुनिया की अन्य महाशक्तियों-अमेरिका, रुस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों में इसका कोई महत्व नहीं है।   दुनिया के लगभग 200 राष्ट्रों में से केवल राष्ट्रकुल के 50 देशों में इसे    राष्ट्रीय खेल का दर्जा प्राप्त है। इस खेल से देश की युवा-पीढ़ी के समय और धन की बेहिसाब बर्बादी होती है।   कई-कई दिनों तक चलनेवाले खेल को खेल कौन कहेगा? दो आदमी बल्ला घुमाएं और 11 आदमी    दिन  भर खड़े-खड़े गेंद झेलने की फिराक में रहें, यह भी कोई खेल है? इस खेल से न अच्छी कसरत  होती है न मनोरंजन होता है। क्रिकेट से भारत को क्या लाभ हुआ, कोई मुझे समझा दे। भ्रष्टाचार के एक   से एक नए किस्से जरुर उजागर होते हैं। फिर भी सचिन को दाद देनी होगी कि उसने अंग्रेजों को उन्हीं के खेल में  मात दे दी।   विश्व-कीर्तिमान स्थापित कर दिए। सचिन को सम्मान तो मिलना ही चाहिए था। यदि वे कोई  अन्य बेहतर खेल खेलते तो भी यही करते। सम्मान के पात्र होते लेकिन उनके बहाने  क्रिकेट सम्मानित हुआ, यह दुखद है। कुछ लोग मांग कर रहे हैं कि खेल को ही सम्मान देना था तो हॉकी   का क्या दोष है? ध्यानचंद को क्यों भूल गए?
कुछ लोग    इस मौके पर   अटलबिहारी वाजपेयी   और   डॉ.राममनोहर  लोहिया को भी भारत-रत्न देने की बात कर रहे हैं।   मैं पूछता हूं कि यदि इन्हें भारत-रत्न नहीं दिया गया तो क्या इन ‘रत्नों के रत्न’ की आभा   किस भारत-रत्न से कम होगी? और फिर किसी भी सम्मान का महत्व इस बात से भी बनता है कि उसे देनेवाला कौन है?   यदि देनेवाला ‘रतन’ खुद ही आभाहीन है तो उसके सम्मान की    कीमत क्या रह जाएगी? इस सम्मान के नाम पर रेवाड़ियां भी बंटी हैं, क्या देश यह नहीं जानता है?     सुकरात, अफलातून, बुद्ध, मार्क्स  और गांधी को  कोई नोबेल पुरस्कार  नहीं मिला  लेकिन उनके  विचारों का असर सारे नोबेल-विजेताओं के कुल असर से भी ज्यादा है। इतिहास का रन्दा बड़ा पैना होता है। वह बड़े-बड़े बादशाहों, प्रधानमंत्रियों, धन्ना-सेठों     और चमत्कारी व्यक्तित्वों    को ऐसा घिसता है कि  उनका नामो-निशान भी मिटा देता है।    इसीलिए श्रेष्ठ  पुरस्कार तो किसी भी व्यक्ति   को उसके  निधन के कम से कम 30 साल बाद याने एक-दो पीढ़ी बाद ही दिया जाना चाहिए।   पुरस्कार  से जिनका  सम्मान बढ़ता है, वे आदर्श पुरस्कृत  व्यक्ति नहीं होते  बल्कि वे होते हैं, जिनसे पुरस्कार का सम्मान बढ़ता है।  यह बात भारत-रत्न पर भी लागू होती है।

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