होता है… ऐसा भी…

मोहन थानवी
मोहन थानवी

शाम घिरे, उससे पहले हवा में रुई के गोले-से तिरने लगे। बर्फबारी। उसने और तेजी से कदम उठाने शुरू किए। अभी तो आधा जंगल ही पार कर पाया था, अंदाज था चौथ का चांद उदय होने से पहले पहले सराय तक पहुंच जाएगा। अंदाज अपनी जगह, मौसम अपनी जगह। वह बिगड़ते मौसम से नहीं घबराया, उसे फिक्र थी तो यही कि वह सराय में समय रहते नहीं पहुंच सका तो….। मौसम के सबसे अधिक ठंडे दिन उसका बूढ़ा पिता बीमार हुआ…। दोपहर में हकीम ने दवा का परचा थमा दिया… दस कोस दूर गांव से दवा लाने वह पैदल ही निकल पड़ा। हकीम की हिदायत जो थी… रात आठ-नौ बजे से पहले… चांद निकलने तक दवा चाहिए। वरना…। जंगल के पेड़ों से छन कर बर्फ उसके सिर पर तेजी से गिरने लगी तो उसने कदमों की रफ्तार भी और अधिक तेज कर दी। वह चलता रहा… लभभग दौड़ता-सा । कितना वक्त बीत गया उसे सुध नहीं थी। दूर.. पूरब में आसमान में ललाई दिखने लगी तो उसकी सांस धौंकनी बन गई। वह दौड़ा… तेज दौड़़़ा…। आखिर वह क्षण आ गया जब दूर क्षितिज पर चांद की कन्नी और सराय की रोशनी उसे एकसाथ नजर आई…। खिड़की मंे खड़े हकीम का साया हिलडुल रहा था… शायद हकीम ने उसे आते देख लिया। वह लालटेन लेकर उसकी ओर बढ़ा आ रहा था। उसने हांफते हुए हकीम को दवा की पुड़िया थमाई और … हकीम की बाहों में झूल गया। बीते पांच छह घंटे में इतनी भारी बर्फबारी हुई थी कि उसके टखने बर्फ में धंसे थे मगर वह अपने पिता की बीमारी के बढ़ने की आशंका से उबरा हुआ था। हकीम ने उसे जैसे तैसे सराय में लाकर बैठाया। पुड़िया से दवा निकाल कर गर्म कहवे में मिला कर उसके पिता को पिलाई। नब्ज देखी, राहत की सांस ली। युवक की ओर देखा… वह बेहोश-सा खाट के नीचे लुढ़का हुआ था। हकीम एक क्षण को ठिठका… अगले ही पल वह तेजी से अपने थैले की ओर दौड़-सा पड़ा। थैले से एक दवा की शीशी निकाल कर सर्दी से लगभग अकड़ चुके उस युवक के कान-नाक में कुछ बूंदें डाली… अब प्राथमिकता से इलाज युवक का करना था।
– मोहन थानवी

सिंधी अनुवाद
उन्हीअं जा पेर बर्फ में धंसजी वया हुआ… पर अब्बा जी बीमारीअ जे वधण जो इमकानु उनसां परे हो…
थिंदोआ… ईअं बि…
सिंझा जो डिओ बरे… उनिखां अगु हवा मंझ कपां जो गोला तिरण लगा। बर्फ किरे पई। उनि तकड़ो हलणु शुरू कयो। अञणु अधु झंगु बाकी हो। अंदाजु कयो हुयाई… चौथ जो चंङ निकरण खां अगु सराय तांई पहंुची वेंदो। अंदाजु पहिंजी जाइ ते ऐं मौसम पहिंजी लइ में। हू खराबु मौसम सां कीन डिजे पयो। उनिखे फिकरु हो त ईओ कि वक्तु रहंदे हू सराय न पहुचंदो त…। पौह जे महीने जे सभिनी खां थदे डिहंु अब्बा बीमारु थिओ। मंझनि जो हकीम दवा जो रुक्को उनिखे इनि हिदायत सां डिनाई कि राति जो अठे-नवें लगे चंङु निकरण खां अगु दवा खपे। हू सराय खां डह कोह परते गोठ डाहुं पंधु निकरी पिओ। तकरीबनि डुकंदे डुकंदे। झंग में वणनि विच मूं बरफ उनिजे मथां किरण लगी … उनिजा कदम बि तकड़ा हलण लगा। वक्ति केतिरो गुजरी वियो… उनिखे इनिजी सुधि किथे…! ओलह पासे ओभ में जरा रोशनी डिसण में आयसि त साहु बि भरिजी वयूसि… पिणु उनिजो डुकण बदस्तूर काइमु रहियो। आखिरु उवा घड़ी अची पहुंती… जडहिं चंङ जी कन्नीऐं परते सराय जे डिअे जी रोशनी गडोगडु निजरु आयसि। सराय जी दरीअ मंे हकीम जो सायो बि लुडंदे डिठांई। डुक तेज थी वयसि। हकीम बि उनिखे डिसी वड़तो हो… तडहिं त लालटेनु खणी उनि वटि अची पहुंतो। उनि हकीम खे दवा जी पुड़ी डिनी ऐं पाण गश खाई उनिजी बाहुंनि में झूलजी वियो। गुजिरियल पंजनि-छहनि कलाकनि में ऐतिरी बरफ किरी हुई कि उन्हींअ जा पेर बर्फ में धंसजी वया हुआ… पर अब्बा जी बीमारीअ जे वधण जो इमकानु उनसां परे हो…। हकीमु उनिखे जीअं तीअं सराय में घीले आयो। हकीम पुड़ीअ मूं दवा कढ़ी गरमु काड़हे में मिलाए उनिजे अब्बा खे पिराई। नब्ज डिठांई। राहत जो साहु खयांई। जवान डाहुं निजर विधईं… हू गश खाई खट जे हिक डाहुं हेठु लुढे पयो। हकीमु हिकु पलु ठिठकी वियो… बे पल में पहिंजी गोथरीअ डाहुं डुकी पयो…। गोथरीअ मूं दवा जी हिक शीशी कढ़ी थदि सां तकरीबनि अकड़जी वयलि जवान जे कन-नक में कुण्झु बूंदां दवा जियूं विधाईं… हाणे इलाजु जवान जो करणो हो।

हदें पार करना हमें ही नहीं… मौसम को भी आता है। देखो न… हर बरस पिछले बरसों के रिकॉर्ड तोड़ने में लगा है मौसम।

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