मूल: नईमा इम्तियाज़ ‘शम्मा’
ए शम्मा-ए-जहां अफ़रोज तेरा आईना हूँ मैं
तू मोम की बनी, मैं मिट्टी की बनी हूँ !
जीने की अदा तुझ सी, मरने का चलन तुझ सा
महफिल में जली तू, मैं अपने घर में जली हूँ !
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सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
ए शम्मा-ए-रौशन तुहिंजों आईनो माँ आहियां
तूँ मेणु जी ठहियल, माँ मिट्टीअ जी ठहियल आहियाँ
जीअण जी अदा तो जहिड़ी, मरण जी रीत तो जहिड़ी
महफ़िल में बरीं तूँ, माँ पाहिंजे घर में बरी आहियाँ !
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