बाबा रामदेव ने यूं तो कोई नई बात नहीं की कि देश में पद्म पुरस्कारों यानि पद्मश्री,पद्य भूषण,पद्म विभूषण आदि देने-दिलाने के लिए जबरदस्त लॉबिंग होती है और इसमें सबसे ज्यादा राजनीतिक दखल होता है। लेकिन मोदी सरकार के करीबी होने के कारण रामदेव का ये कहना मायने रखता है। खुद बाबा को सरकार इस बार पद्म पुरस्कार देना चाहती थी,लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया था। इसके बाद हरियाणा की भाजपा सरकार ने उन्हें अपना ब्रांड एम्बेसेडर बनाने का ऐलान किया था,लेकिन उन्होंने इससे भी मना कर दिया था। हालांकि बाबा रामदेव ने योग के क्षेत्र में जो क्रांति की है,उसके लिए वो ऐसे किसी पुरस्कार के हकदार हैं। लेकिन इसके लिए भाजपा सरकार आने के बाद उनका चयन होने से जाहिर है कि उन्हें यह सम्मान मोदी और भाजपा के करीबी होने के कारण मिल रहा था। यानि चयन राजनीतिक था।
दरअसल,हमारे देश में राष्ट्रीय सम्मानों के चयन की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होने के कारण इन्हें लेकर हमेशा संदेह की स्थिति रहती है। किस आधार पर किसे पद्म पुरस्कार दिया जा रहा है,ये कभी पता ही नहीं चलता। इसीलिए कभी उस चिकित्सक को ये मिल जाता है,जो प्रधानमंत्री या किसी बड़ी राजनीतिक हस्ती का आॅपरेशन करता है,तो कभी उस पत्रकार को मिल जाता है,जो सरकार के गुणगान को पत्रकारिता का मकसद बना लेते हैं। कभी ऐसे खिलाड़ी को मिल जाता है,जिससे कई श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले इससे वंचित रह जाते हैं। नेताओं के कई करीबी भी इन पुरस्कारों को ले उड़ते हैं। ऐसा नहीं कि ये पुरस्कार केवल राजनीतिक सिफारिशों से ही मिलता है,योग्य व्यक्ति भी इसे हासिल करते हैं। लेकिन ऐसा कम ही होता है। पद्म पुरस्कार क्यों,हमारे यहां तो सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। जाहिर है जब अटलबिहारी वाजपेयी से पहले सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलेगा,तो इन राष्ट्रीय सम्मानों के प्रति संदेह तो उत्पन्न होगा ही।
वरिष्ठ पत्रकार ओम माथुर की फेसबुक वाल से