प्रजातंत्र की सुरक्षा, पुलिस कार्य प्रणाली पर निर्भर है..?

संतोष गंगेले
संतोष गंगेले
पुलिस का सीधा अर्थ सुरक्षा ऐजेन्षी से है । किसी भी देष की समाज की सुरक्षा केलिए समाज से ही प्रजातंत्र की रक्षा व जनता के न्याय केलिए कानून का पालन कराने केलिए जो दायित्व विभाग को दिया जाता है उसे हमे पुलिस बिभाग कहते हैं । पुलिस की परिभाषा अलग-अलग राष्ट्र में अपने तरह से की गई हैं । हमारे भारत में पुलिस तीन भागों में विभाजित की गई हैं । एक पुलिस बर्दी आर्मी सेना से हैं जो समूचे देष की सुरक्षा केलिए रहती हैं । आर्मी सैना भी तीन तरह से हैं जल सेना, थल सेना , नभ सेना, इनका कार्य भी अगल अगल हैं सेना का कार्य देष की सुरक्षा, आपत काल संकट में मदद करना, आंतकवाद आदि से निपटने केलिए सेना की ही मदद ली जाती है । दूसरी पुलिस की बर्दी राज्य सरकारों के आधीन रहती हैं जिसमें पुलिस आरक्षक , बरिष्ठ पुलिस आरक्षक, प्रधान आरक्षक सहायक पुलिस उप निरीक्षक, उप निरीक्षक, निरीक्षक, सीओ,, डी एस पी, , एस0डी ओ पी,, सी एस पी, , ए,एस,पी, एस,पी,, पुलिस उप-महानिरीक्षक महानिरीक्षक , उप महानिर्देषक, महानिर्देषक के पद बनाये गये हैं । यह सभी कार्य गृह सचिव, गृह मंत्री के अधिकार क्षेत्र में आते है । तीसरा राज्य सरकार एस, एफ, टॉक्स र्फोस, होमगार्ड आदि बिषेष पुलिस बल आता हैं । लेकिन हम यही कहेगें कि पुलिस की वर्दी का रंग व कार्य बदल सकता हैं लेकिन लगभग सभी का दायित्य या कार्य देष रक्षा, समाज सुरक्षा, अन्याय, अत्याचार, अपराधों को रोकना, कानून का पालन करना एवं कराना आम आदमी पुलिस से सुरक्षा व न्याय की आषा करता हैं । पुलिस की बर्दी से ही प्रजातंत्र की रक्षा संभव हैं ।

यदि पुलिस ईमानदार, निष्पक्ष, लगनषील हैं तो उस देष की छबि बिष्व में अपनी पहचान होती है । चाहे राजतंत्र रहा है या प्रजातंत्र बिना पुलिस का हमारा कोई इतिहास नही है ं इसलिए पुलिस की छबि पर ही एक तंत्र एवं प्रजातंत्र की बास्तविक कल्पना की जा रही है । षासन हो या प्रषासक वह कितना ही ईमानदार, लगनषील, कर्तव्य निष्ठा व योग्य हो लेकिन उसकी सेना सुरक्षा में बिष्वास की कमी हैं तो उस ष्षासक का कार्य अल्प काल के लिए ही कहा जा सकता है । पुलिस की परिभाषा में हर नागरिक का न्याय छुपा रहता है ।

पुलिस घर, परिवार, समाज, प्रान्त, देष की सुरक्षा केलिए स्थापित की जाती हैं पुलिस का दायित्य है कि वह अपनी छबि बनाने रखने केलिए जो भी सैनिक नौकरी करने के साथ ष्षपथ लेता है उसे अपनी ष्षपथ का ही स्मरण रखना चाहिये ंउसी ष्षपथ के अनुसार ही कर्तव्य का पालन करना चाहिये । पुलिस की ष्षपथ से बड़ी कोई अन्य ष्षपथ नही होनी चाहिये । पुलिस की बदी पहिनने के बाद उसका कर्तव्य, उसका धर्म , उसका जीवन देष की सुरक्षा समाज की रक्षा, अन्याय, अत्याचार, अपराध करने बालों को सजा दिलाने केलिए लगातार प्रयासरत रहना ही जीवन होना चाहिये । पुलिस के एक सिपाही से लेकर पुलिस का सर्वोच्यपद पुलिस ही कही जाती हैं । पुलिस कानून की रक्षा करती और कराती है । प्रषासन तंत्र , प्रजातंत्र की रीढ़ की हड्डी कह सकते है । आम जनता से लेकर भारत के राष्ट्रपति तक की सुरक्षा की जुम्मेदारी पुलिस पर होती है । पुलिस एक भरोसा व विष्वास है । जनता की सुरक्षा पुलिस पर ही रहता है । पुलिस अनेक नामों से जानी जाती है । देष की सुरक्षा के लिए आर्मी , बिषेषषस्त्र बल , कंपनीओं में भी विभाजित हुआ करती है । कानून का पालन कराने एवं करने केलिए पुलिस होती है , यदि पुलिस कर्मचारी भृष्टाचार करते है, कानून की आड़ में ब्लक मेल करने वाले या अपराधिओं को बढ़ावा देने वाले, अपराधिओं से सॉठ गॉठ कर अपराधों में संलग्न पुलिस कर्मचारी देष द्रोही कहे जाते है । इसलिए पुलिस की विष्वसनीयता एवं बर्दी की बेदाग छवि से ही प्रजातंत्र एवं ष्षासन तंत्र की छवि बनती है ।
इसलिए पुलिस बर्दी पर ही हमारे देष व राष्ट्र का न्याय टिका रहता हैं । पुलिस को अपनी बर्दी का ध्यान रख ही कार्य करना चाहिीये । न्यायपालिका एवं कार्यपालिका के आदेष का पालन करना कानून की रक्षा करना, कानून का पालन करना समाज में ऐसे अनेक प्रकरण आते है जो अपराध की जड़ जमाते है इसलिए हर सिपाही को अपराध के पौधा उगने के पूर्व उसको जड़ से ऊखाड़ कर फेंकना ही कर्तव्य निष्ठता हैं । हमारे भारतीय संबिधान में जो पुलिस को अधिकार दिये हैं उसका उपयोग निष्पक्ष रूप से पालन करना चाहिये । किसी भी निर्दोष को अपराध में फंसाया नही जाना चाहिये व दोषी को बचाना नही चाहिये । यही न्याय है । न्याय दिलाने केलिए ही पुलिस की स्थापना हुई हैं । पुलिस के बिना कोई भी समाज की कल्पना नही की जा सकती है । जब तक मानव के नियंत्रण केलिए कोई भय न हो वही नियंत्रण में नही रह सकता है । इसलिए भय के लिए कानून में पुलिस की स्थापना हैं । पुलिस का दायित्य है कि वह पुलिस बर्दी की इज्जत , ईमानदारी व कर्तव्य निष्ठा केलिए जितना अधिक कार्य कर सकें पुलिस कर्मचारियों को करना चाहिये । पुलिस का दायित्य है कि आम जनता की छोटी से छोटी षिकायत या सूचना यदि उसके पास आती हैं पुलिस को तुरन्त उस पर कार्यावाही एवं जॉच करनी चाहिये ,अन्यथा छोटी छोटी सी घटनायें ही संगीन अपराधों को जन्म देती है ।
अपराध की जड़ यदि हम इस प्रकार से कहें कि जुआ, नषा,ष्षराब, इष्कवाजी, दूसरे की संपत्ति पर अनाधिकृत कब्जा या फिरोती से ही ष्षुरू होते है । जो आगे चलके बहुत खतरनाक अपराध हो जाते हैं इसलिए पुलिस का भय आम अपराधी पर होना चाहिये । यदि पुलिस का भय रहेगा तो आम अपराधी कोई भी अपराध करने के पूर्व संबंधित थाना प्रभारी, पुलिस अधीक्षक की कार्यप्राणाली पर बिचार करता है । जो बदले की भावना से अपराध होते हैं उन्हे पुलिस कभी नही रोक सकती हैं क्योकि बदले की भावना से जो अपराध अक्रोष व क्रोध की अग्नि के कारण होते हैं । ऐसे अपराध तो सृष्टि से होते आ रहे हैं और होते रहेगें । बदले की भावना से होने बाले अपराधों को परिवार व समाज के लोग ही रोकने में सफल हो सकते हैं । जब कोई दुष्मनी हो जाती है तो उसे समाज परिवार व रिष्तेदार बैठकर ही समस्या का समाधान निकाल पाते है । लेकिन सामान्य अपराध , समाज बिरोधी असामाजिक तत्व करते हैं उन पर पुलिस पूरी तरह भी नियंत्रण प्राप्त कर सकती है । यदि कोई अपराधी , लूट , डकैती , हत्या , बालात्कार, दुराचार, अपहरण, फिरौती ,राहजनी आतंतकवाद, देषद्रोह करते हैं ऐसे अपराधिओं को कठोरतम दंड मिलना चाहिये तथा आदतन अपराध करने बालों को न्यायालय से फॉसी दिलाना चाहिये या पुलिस को गोली से उड़ा देना ही समाज हित में होता है । पुलिस यदि न्याय दिलाने में सक्षम नही होगी तो समाज व देष एकतंत्र प्रषासन हो जायेगा । पुलिस की कार्यप्राणाली व उनकी कार्यक्षमता से ही जनता सुख चैन की नींद ले पाती है । भारत सरकार एवं प्रदेष सरकारें समय समय पर पुलिस कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान करती है, करना भी चाहिए । प्रजातंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रेस पुलिस नियमों को बिषेष अधिकार देकर न्याय की आषा करता है । पुलिस जहां आम नागरिकों की खंुषी है वही अपराधिक एवं अपराधियों की दुष्मन होती है । मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता एवं स्वतंत्र समाज की कल्पना पुलिस की कार्यप्राणाली पर निर्भर है । पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक सिपाही से लेकर पुलिस महानिर्देषक के पद पर जो भी व्यक्ति पदस्थ होते है या किए जाते है उनकी मानसिक स्थिति देष प्रेम व समाज सुरक्षा की होती है । पुलिस कर्मचारियों के लिए सरकारें समय समय पर उनकी आवष्यकताओं की पूर्ति करती है तथा उन्हे सम्मान प्रदान करती है उनके परिवारों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती है । पुलिस कर्मचारियों के मधुर व्यवहार के कारण ही पुलिस के लिए मुखबिर के रूप में जनता कार्य करती है । पुलिस की सफलता का राज प्रषासनिक तंत्र के साथ साथ मुखबिर तंत्र अधिक सक्रिय भूमिका का निर्वाहन कर समाज में ष्षॉति सदभाव व अमन चैन लाने में सहायक होते है । कभी कभी कुछ पुलिस कर्मचारी आत्याचार, आंतक एवं अन्याय करने लगती है तो जनता को मजबूरी में पुलिस को सबक सिखाने केलिए कानून को अपने हाथ में लेना पड़ता है । पुलिस कर्मचारियों एवं अधिकारियों में जनता के बीच प्रेम, भाई चारा, सदभावना, दया भाव एवं आपसी समझौता जैसे विचारों को भी कानून से हटकर समाज में ष्षॉति बनाये रखने केलिए स्थान देना पड़ते है । हमारे आपके परिवार के सदस्य ही पुलिस कर्मचारी अधिकारी होते है इसलिए पुलिस से भय नही सहयोग की भावना से सहयोग करना चाहिए ।

आम आदमी को चाहिये कि वह स्वयं कोई अपराध न करें और दूसरे को उस्काने का कार्य भी न करें । हमें मालूम होना चाहिये कि भारतीय संबिधान में ऐसा प्रावधान बनाया गया है कि अपराध करने उसकाने बाले से बड़ा अपराध की भूमिका बनाने बाला बड़ा अपराधी माना गया है । यदि कोइ अपराध करता है तो उसकी सूचना पुलिस तंत्र को किसी न किसी रूप से देना चाहिये । पुलिस को सूचना देने केलिए दूरभाष, मोबाईल, डाक पत्र से दे सकते है । यदि कोई गम्भीर प्रकरण हो गया है और आपकी जानकारी में है तो समाज व राष्ट्रहित में सही सूचना एवं तथ्यो के साथ गोपनीय पत्र के व्दारा किसी पुलिस के बरिष्ठ अधिकारी को भी दी जा सकती है । पुलिस विभाग सभी तरह की सूचनाओं पर गौर करता है और पूरी निष्पक्षता से जॉच भी कराता है । समाज एवं पुलिस के बीच तालमेल भी होना आवष्यक है । समाज में पुलिस की छबि स्वच्छ रहे , पुलिस अधिकारी मिलनसार होने के कारण आमद नागरिक पुलिस की मदद केलिए तैयार रहते है । यदि कोई पुलिस कर्मचारी रिष्वतलेकर अपराधी को छोड़ देता है तो लोगों को पुलिस कार्यावाही में बिष्वास नही रहता है इसलिए अपराध करने बाले को ष्षारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं कानूनी दण्ड देना पुलिस की जुम्मेदारी हैं । हमारे देष के नौ जवान सैनिक व पुलिस कर्मचारियांें को समय समय पर समाज के लोगों को सम्मान व नागरिक अभिनंदन करना चाहिये । अच्छे कार्य करने बाले सैनिकों , नौ जवानों, पुलिस कर्मचारियों का सम्मान करने से आत्मषक्ति को बल मिलता है और सम्मान के कारण ही वह अपने जीवन को हम आप की सुरक्षा केलिए बलिदान के रूप में ष्षहीद होने केलिए हमेषा तैयार रहते है । भारतीय पत्रकारिता को चाहिये कि वह ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा व न्याय प्रदान कराने बालें पुलिस कर्मचारियों अधिकारियों को समय समय पर अपनी कलम के व्दारा सम्मान देते रहे तो पुलिस कर्मचारियों के होसले बुलन्द होते है ं । कर्तव्य निष्ठा एवं ईमानदारी, समाज की सेवा करने वाले तथा कानून का पालन कराने वाले पुलिस कर्मचारियों को प्रषासन तंत्र व्दारा भी सम्मानित किया जाता है ।

– संतोष गंगेले, प्रान्तीय अध्यक्ष प्रेस क्लब मध्य प्रदेष

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