सूखे नदियोें के घाट, कार्तिक स्नान कैसे हो

khem chandra
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हमारे बुन्देलखंड में कार्तिेक मास का बहुत ही महत्व होता है। इस मास में हमारी बुन्देली संस्कृति के अनुसार महिलायें एक मास तक पूरे धार्मिक श्रद्वा भाव से भगवान श्रीेकृष्ण की उपासना में लीन रहती है।
महिलाए सुबह से उठकर समूह बनाकर भगवान श्रीक्ष्ण के गीत गाती हुई नदी, तालाबों में नहान के लिये जाती है।और वहां से नहा धोकर मन्दिरोें में पूजा अर्चना करती हुर्इ्र घर बापस आती है।
किन्तु आज नदियों में पानी बचा ही नहीं हैं। पूरा बुन्देल खंड सूखें की चपेट में है। आज जहां नदियों में पानी होना चाहिए वहां पर देखने में नदियां मात्र रेगिस्तान ही दिखाई देती है। इसका सीधा प्रभाव हमारे धार्मिक कार्यक्रमों पर भी पडा है।
आज कार्तिेक स्नान करने बाली महिलाओं को अपने घरों में या हैंड पम्पों पर नहानों को मजबूर होना पड रहा है। क्यों कि कुओं का प्रचलन तो शायद बंद सा ही हो गया है। कुछ अपवाद को छोडकर देखें तो ंतालाबों के घाटों पर इतनी गंदगी रहती है कि वहां पर खडे होना दूभर रहता है।
इस बीच महिलाओं के द्वारा स्वांग कृष्ण एवं गोपी के रूप में किया जाता है जो अदभुत होता है।उनके द्वारा गीत कुछ इस तरह गाये जाते है।
गीत
ग्वाल..धन्य, धन्य है घरी आज की भले मिले ब्रजबाला।
चन्द्रमुखी तुम ठाडों रइयों टेरत है नन्दलाला।।
गोपी…..काये छैकी गैल हमारी का है अपनों काम।
कौन देश के हौ तुम राजा का है अपनों नाम।।
कृष्ण….ब्रज गोकुल के हम रहवैया किसन हमारो नाम।
दान दई को लेत सबई से एकर्इ्र हमरौ काम।।
गोपी…….बिन्दावन की कुंज गलिन में छेडज नार पराई।
बने फिरत हो ब्रज के राजा करत रये हरवाई।।
कृष्ण…..हर हांके से अन्न होत है हर की घर घर पूजा।
तीन लोको चौदा भुवन में हर समान नई दूजा।।
…………..कुछ इस तरह से कतकारियों का यह मास भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हुये निकलता हेेै।
khem chandra raikwar

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