मेरी ‘तीन अनुभूतियाँ ‘

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
एक ………

मेरे करीब से,
उसका-
यों गुजर जाना,
तोड़कर-
रख देता है,
मेरी उन
यादों को ही,
और फिर-
शेष रह जाता हूँ,
जैसे कि-
मैं
नहीं था।

×××××××××××××××××××××××××××××××

दो…….

पानी,
मर गया है,
शायद
इसीसे-
उन बिलखते,
परिजनों के प्रति-
कुछ भी क्यूँ ,
नहीं उगता-
जहन मे ।
दो चार ,
या-
दस को
छुरे से घायल,
या फिर गोलियो की-
बौछार से,
छलनी हुए-
देखकर भी ??
सुना है, मैंने-
पानी मरते देखकर,
खून भी-
डरने लगता है,
कतरा-कतरा !!!

××××××××××××××××××××××××××

तीन……

अब तो !
बीवी के संग-
टीवी -भी/हावी हुई,
बची कहाँ, दरकार !
मुनिया के हाथ-
क्या ‘रिमोट’ लगा,
जैसे बदल गया/संसार ।
यहाँ,
इन्कम पर/टैक्स नही है!
और ना –
उपभोक्ता -संस्कृति का,
भार-
केबल/टेबल ,
नैटवर्क की-
अब झेल रहे / मार ।

Shamendra Jarwal

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