राष्ट्रीय स्वयं सेवक निःसंदेह एक अनुशासित संगठन है तथा राष्ट्रीयता से ओतप्रोत है लेकिन संगठन हिंदू राष्ट्र स्थापना के ध्येय को लेकर वैचारिक क्रान्ति चलाये रखने को स्वतंत्र है तथा उस में कोई बुराई भी नही है परन्तु भारत का यथार्थ कि भारत में हिंदू और मुस्लिम साथ साथ रहते आये हैं और साथ साथ ही रहेगें। बहुमत का कर्तव्य है कि अल्प मत को संरक्षण दे तथा सभी एक दूसरे के धर्म का सम्मान करे। एक सत्य यथार्थ है कि भारत का सन् १९४७ में में विभाजन दुर्भाग्य पूर्ण था जिसको टाला जा सकता था लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों में विभाजन भारत के लिये श्राप सिद् हुआ है और हो रहा है लेकिन उस त्रासदी को पुन: नही दोराया जा सकता है। संघ सहषुणता व राष्ट्रीय एकता के साथ साथ अल्प मत के संशय या परस्पर अविश्वास की दीवार को राष्ट्रीय हित निर्मूल अभिव्यक्ति व आचरण से विश्वास दिलाये जाने का अनवरत प्रयास ज़ारी रखे।संघ को उदारवादी दृष्टि कोण को मुख्य विचार बिंदू बनाना चाहिये। कभी कभी संघ प्रमुख द्वारा विचारधारा में आशिंक फेर बदल भ्रम उत्पन्न करता है।मैं संघ के भाजपा पर हस्तक्षेप या दिशा निर्देश अथवा प्रभावशाली रोल को ग़लत नही माना जा सकता परन्तु संघ इस यथार्थ को स्वीकार करने से बचता क्यों है। निःसंदेह आज संघ काफ़ी प्रभावशाली है तथा सरकार में उसका दख़ल है लेकिन संघ प्रत्यक्ष रूप इस सत्य को स्वीकार करने से बराबर बचता है जो अस्वाभाविक प्रतीत होता है तथा संघ में विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता कितनी है मुझ को इस तथ्य की कोई निजी जानकारी नही है। वर्तमान मे जनसामानय के मन मस्तिष्क में एक दुविधा घर करती जा रहीहै कि प्रधानमंत्री मोदी देश विदेश में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के प्रति आस्था व्यक्त करते हुये उनके आदर्शो के अनुसरण पर बोलते हैवही अन्य व्यक्ति गांधी के हत्या के दोषी को महामंडित करता है जिस पर मात्र विचारों की अभिव्यक्ति का सहारा देकर व उनको सार्वजनिक रूप निरुत्साहित न किया जाकर भ्रम का वातावरण को सथान देता है। मै निजी तौर मानता हूँ कि संघ को स्वयम् की विचारधारा के अनुरूप सरकार व शासन को प्रभावित करने की स्वतन्त्रता व अधिकार है परन्तु इस लक्ष्य प्राप्ति हेतू स्पष्टता में निरंतरता रहनी चाहिये । यह मेरे निजी विचार है जो किसी विचारधारा या राजनैतिक दल से संबंधित नहीं हैं।मैंने आपत्काल से पूर्व संघ पर बैन लगाये जाने का वैचारिक स्तर पर विरोध किया है। आपत्काल मे मैंने कई संघ के प्रमुख सेवकों के नज़रबंद किये जाने का विरोध भी किया और नज़रबंद किये जानें से रोके जाने का कृत्य भी किया है।मेरी निजी राय में संघ को रूढ़िवादीता के सथान पर उदरवादीता को आत्मसात करना चाहिये।
सत्य किशोर सक्सेना , एडवोकेट , पूर्व ज़िला प्रमुख , अजमेर 9414003192