मृत्युभोज एक अभिशाप

gopal singh jodha
gopal singh jodha
आज भी हमारे समाज में कई प्रकार की कुप्रथाए फैली हुई है जिनमें से मृत्युभोज भी पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी कुप्रथा है |मृत्युभोज एक ऐसी कुप्रथा है जिसके अंदर हमारा समाज दिनों दिन डूबता जा रहा है इस ओर न तो सरकार ध्यान दे रही व न ही कोई सामाजिक संगठन या समाज सुधारक |
जिस परिवार में विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी में जरूर खड़े हों ओर तन मन व धन से सहयोग करें पर मृत्युभोज का बहिष्कार करें |
महाभारत के समय जब महाभारत का युद्ध हो रहा था,तब श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने का आग्रह किया, तो दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और व चल पड़े तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन के आग्रह पर श्री कृष्ण ने कहा कि
“सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि ना पुनै:”
हे दुर्योधन जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो,तभी भोजन करना चाहिए |
लेकिन जब खिलाने वाले एंव खाने वालों के दिल में दर्द हो वेदन हो तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए |
हिन्दू धर्म में मुख्य 16संस्कार बनाए गए है,जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अंतिम तथा 16वां संस्कार अत्येषि्ट है| इस प्रकार जब सत्रहवां संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवां संस्कार तेरहवीं संस्कार कहां से आ टपका|
इससे साबित होता है कि तेरहवीं संस्कार समाज के चन्द चालाक लोगों के दिमाग की उपज है |किसी भी ग्रंथ में मृत्युभोज का विधान नहीं है |
बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है| लेकिन जिसने जीवन पर्यन्त मृत्युभोज खाया हो उसका तो ईश्वर ही मालिक है | इसलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती, पं. श्री राम शर्मा,स्वामी विवेकानन्द जैसे महान मनीषियों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है |
जिस भोजन बनाने का कृत्य जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर, आटा गूंथा जाता तो रोकर एवं पूडी बनाई जाती तो रोकर यानी हर कृत्य आंसूओं से भीगा |
ऐसे आंसूओं से भीगे निकृष्ट भोजन एवं तेरहवीं भोज का पूर्ण रूपेण बहिष्कार कर समाज को एक सही दिशा दें|
मृत्युभोज समाज में फैली कुरिती है व विकसित समाज के लिए अभिशाप |

1 thought on “मृत्युभोज एक अभिशाप”

  1. कृपया महाभारत से सम्बंधित श्लोकों का लिंक भेजें।

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