खेल,राजनीति और फिल्मों का काकटेल

ओम माथुर
ओम माथुर
पहलवान योगेश्वर को सलाम। उन्होनें सलमान को रियो ओलंपिक का ब्रांड एम्बेसडर बनाने का विरोध किया है। पता नहीं इससे सलमान खान की फ़िल्म सुलतान को फायदा होगा या खेलों को। सलमान सुलतान में पहलवान की भूमिका निभा रहे हैं। क्या उन्हें इससे अपनी फ़िल्म के प्रमोशन का मौका नहीं मिलेगा। एक बात समझ नहीं आती की कोई फ़िल्मी हीरो खेलों का ब्रांड एम्बेसेडर क्यों हो। क्या कभी किसी फ़िल्मी आयोजन में किसी खिलाड़ी को आज तक ये इज्जत बक्शी गयी है। हां,फिल्मी कलाकर अब फिल्मो के साथ ही खेलो से भी खूब माल काम रहे है। क्रिकेट,कबड्डी, हॉकी के लिए हो रहे आईपीएल,प्रो कब्बडी जैसे तमाशे की कई टीम हीरो- हिरोइनों ने ही खरीद रखी है। अभी तक खेलों पर राजनितिग्यो का ही कब्ज़ा था। लगभग सभी खेल संघों पर नेता ही काबिज है। जिन्हें बल्ला पकड़ना नहीं आता वो देश में क्रिकेट की बागडोर संभाल रहे हैं। जो खुद चार कदम नहीं चल सकते वो एथलेटिक संघों के पदाधिकारी है। जो मैदान की लम्बाई चौड़ाई नहीं जानते वो हॉकी संघों में जमे हैं। जाहिर है खेलों की दुनिया में खिलाडियों से ज्यादा हस्तक्षेप नेताओ का है।अब लगता है इसमें बॉलीवुड भी घुस रहा है। लेकिन असली नुकसान तो खेलों का हो रहा है।तभी तो हम ओलंपिक में पदक पाने की तरस जाते हैं। और जिस खेल में पदक मिलता है उस शूटिंग को लोग जानते ही नही है। देश में खेलों को बचाना है तो इन्हें राजनीति और फ़िल्मी दुनिया से आजाद करना होगा। लेकिन क्या हमारे देश में ये मुमकिन है। क्या देश है जहां राजनीति खेल और खेल राजनीति बन गया है और इसीलिए दोनों का बंटाधार हो़ रहा हैं।

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