दोस्त या प्रेमी

रश्मि जैन
रश्मि जैन
बातें तो
अक्सर हुआ करती थी
फोन पर तो कभी मिलने पर
लेकिन कभी मन में मेरे
कोई ख्याल न आया उसके प्रति
फ़िर अचानक एक दिन
तुम सिर्फ मेरी हो….
हो न….
ऐसा कुछ सुनाई दिया
हां यही तो कहा था उसने फ़ोन पर
अचंभित रह गई मै
दिमाग जैसे सुन्न हो गया
जो कभी सोचा न था
वो आज तक मेरे कानों में गूँज रहा है
नही.. ऐसा सम्भव नही.. मैंने कहा
क्यों सम्भव नही…
मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ
जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो
जीने की वजह मिल गई है मुझे..
देखो मना न करना
अगर तुम चली गई तो जी न सकूँगा
बड़े पशोपेश था मेरा मन
कुछ कह न सकी
सारी रात अंतर्द्वन्द्व में बीत गई
एक बार फिर वही सब दोहरा दिया उसने
मना न कर सकी लेकिन
पूरी तरह अभी मन तैयार न था
रोज़ बातें होने लगी
वो प्यार जताता रहा लेकिन
मेरा मन खुल कर कभी स्वीकार भी न कर सका और मना भी न कर सका
अचानक उसमे बदलाव नज़र आने लगा
जो कल तक तारीफ करते नही थकता था
मेरी बातें अब बोर करने लगी उसे
अचानक एक दिन सब कुछ बदल गया
दिखाकर नाराज़गी चला गया
अवाक् सी देखती रह गई मै
दिल दिमाग एकबारगी फ़िर से सुन्न पड़ गया
क्या कसूर था मेरा…
अचंभित कर गया मुझे यूँ अचानक
उसका मेरी जिंदगी में आना और चले जाना
“जिनको हमने खुद से ज़्यादा प्यार किया वही हमसे बेगाने हो गए…
चले गए किसी नए प्यार की तलाश में शायद उनकी नज़र में हम अब पुराने हो गए”…
“दोस्त को प्यार करने की गलती न करना कभी
दोस्त को दोस्त ही रहने दो
दो चार मुलाकातों में भर जायेगा मन उनका
फिर मिलने को उम्र भर इंतज़ार करते रहना”…

रश्मि डी जैन
नई दिल्ली

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