दषहरा व ईद मिलन

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
दषहरा आने के कुछ सप्ताह पहले ही चाचा की दुकान पर एक से एक आकर्षक सिले हुए षर्ट, फ्रांक,पेंट,टी षर्ट बच्चों का मन लुभाने लगते थे।तरह-तरह की चौकडियॉ लाईनिंग बच्चों के मन को खुब लुभाती थी । दादा रामनारायण उपाध्याय भी उनको देखकर कल्पना करते थे- ये मिन्टू पहनेगा तो कितना अच्छा लगेगा ये फ्र्राक पुंटू पहनेगी तो कितनी अच्छी लगेगी ये अप्पू तो ये षुंटू के लिए ठीक रहेगा। दादा के माथे 4 लड़के व 5 लडकियों के परिधान की चिंता थी। एक दो को दिलाकर वो बाकी को दुःखी नहीं कर सकते थे।
चाचा भी दादा के मन की बात को समझते थे । इस लिए वो कहते थे – आप बच्चों को जो चाहे वो दिला दें मै उधार देने के बाद भी सस्ते दाम ही लगाऊॅगा। आपकी खुषी से दीवाली मन जाने पर मुझे बहुत खुषी होगी । हर बार तो आप मेरा पैसा बिना तकाजे के किसी भी दषा में ईद के चार छे दिन पहले देकर मेरी ईद खुषी से मनवा देते है।
आप मुझे भाभीजी के हाथ के संजोरी गुजे खिलाने के बाद ही दीवाली मनाते हैं तो मेरी बेगम भी ईद पर पहली बार की बनी सिंवईया आपके ही घर भेजती हैं। सदी बदल गई आपसी सौहार्द नहीं बदला। भारत में अनेकता में एकता का ताना-बाना आपसी सौहार्द व सामंजस्य से ही मजबूत बना हुआ है और सदैव बना रहेगा। इसमें जाति धर्म का भेदभाव नहीं होता । मुस्लिम की बनाई चादर मंदिर व गुरुद्वारे में चढ़ाए बिना पूजा नहीं होती । सभी धर्म एक दूसरे के सहयोग से विष्व षॉति के लिए संकल्परत हैं।
हेमंत उपाध्याय,
व्यंग्यकार एंव लघुकथाकार
गणगौर साधना केन्द्र साहित्य कुटीर,,पं0 रामनारायणजी उपाध्याय वार्ड क्र0 43 खण्डवा ( म0प्र0)450001 9425086246 9424949839
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1 thought on “दषहरा व ईद मिलन”

  1. सामाजिक सौहार्द की फिक्र करती है यह कहानी। रिश्तों में कुछ तो मिठास बचाकर रखेंगे हम या अब फुर्सत बची ही नहीं है इसके लिए।

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