लेकिन साफ़ होगा कैसे ये भ्रष्टाचार?

डॉ. अशोक मित्तल
डॉ. अशोक मित्तल
मोदी जी, आपने 500 व हजार के नोट बंद करके सफाई का बिगुल तो बजा दिया लेकिन साफ़ होगा कैसे ये भ्रष्टाचार??
इस सुलगते प्रश्न का जवाब हर कोई एक दुसरे से पूछ रहा है. वर्तमान में जो दिक्कतें हो रही हैं उन्हें हर कोई सहन करने को तैयार भी है लेकिन कब तक? ५० दिन बाद क्या होगा? महिलाओं की मुद्दतों पुरानी आदतें पाई पाई जोड़ कर नगदी व जेवर रखने की जो संस्कारों, उनके जींस में समाहित हैं उन्हें तो चलो वे रो धो के बदल भी लेंगी. पूरे सिस्टम में जो रिश्वत / सुविधा राशि लेने की आदतें गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुकी हैं, उनका आप सफाया कैसे करोगे? जनता का कोई भी काम हो, किसी भी विभाग का हो बिना केश का चडावा चड़ाए जब एक कदम भी फाइल आगे नहीं बड़ती तो अब क्या होगा?
सब्जी, फल, कपडा व रोज मर्रा की हर चीज अब तक हर कोई नगद दे कर ही खरीदता आ रहा है, तो अब अगर वो क्रेडिट कार्ड या फ़ोन बैंकिंग से खरीददारी करेगा तो क्या एक आम नागरिक जो अधिकतर कम पडा लिखा है या पडा लिखा होते हुए भी प्लास्टिक मनी के उपयोग से अनभिज्ञ है, उन्हें इस नयी धारा में आने में भी तो वक़्त लगेगा! खासकर वृद्धजन !
क्रेडिट कार्ड का फायदा अब तक समाज के उत्कृष्ट व विशिष्ट तबके को ही मिलता रहा है. एक से दो प्रतिशत का सरचार्ज जो इन कार्डों से लग जाता है उससे बचने को लोग केश ही पे करते हैं. उदाहरण के तौर पर अस्पतालों का बिल मेडिकल कार्ड से चुकाने पर 2% सरचार्ज लग जाता है, तो मजबूरन ATM से केश निकला कर बिल जमा कराना पड़ता है जो अम्बानी जैसे होस्पिटलों में तो लाखों में हो सकता है.
इस सबके उलटे होना तो ये चाहिए की कार्ड से पे करने पर 1-2% की रियायत देनी चाहिए. तो ऐसे छोटे छोटे कदम बरते जाएँ तो फिर स्वतः ही डिजिटल भारत की दिशा में ये सहायक होगा.
बैंकों के बाहर लम्बी लम्बी कतारें हैं. कुछ तो वास्तव में तकलीफ में हैं, कुछ अपने धंधे के लिए गरीबों का उपयोग कर रहे हैं. आज अधिकतर जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है. भ्रष्ट तंत्र में ये पता लगाना मुश्किल है की रिश्वत देने वाला सही है या लेने वाला. कौन किसे मजबूर कर रहा है? टैक्स बचाने के लिए काला धन एक मजबूरी है, आदत है या इरादा है.
इस चहुँ और व्याप्त रिश्वत खोरी, काला बाजारी, भ्रष्टाचारी को मिटाने के इस प्रयास में जनता तो मन से सरकार के साथ है वहीं कई लोग अपनी अपनी रोटियाँ सेंकने में भी लगे हैं. इन रोटी सेंकने वालों के चक्कर में गरीब और भोले लोग कभी भी फंस सकते हैं. ऐसा ही अब तक होता आया है. इस आशंका से बचने के भी उपाय आपके सहयोगियों ने ढूंढें होंगे. कुल मिला कर अच्छी सोच और अच्छे बदलाव के साथ परिणाम भी अच्छा व दूरगामी हो, इसका ध्यान रखना ज़रूरी है, वरना किया धरा सब कुछ कहीं गुड गोबर नहीं हो जावे!

डॉ. अशोक मित्तल, मेडिकल जर्नलिस्ट

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