बाल विवाह मुक्त हो पंचायत और हर बालिका को मिले शिक्षा

– बाबूलाल नागा-
एक समय था जब पंचायतें केवल निर्माण कार्यों तक ही सीमित होती थी। पंचायत का नेतृत्व करने वाला प्रतिनिधि ज्यादा से ज्यादा निर्माण कार्य करने पर जोर देता था लेकिन महिला जनप्रतिनिधियों ने इस मिथ्या को तोड़ रही है। वे अब निर्माण कार्यों के साथ-साथ महिलाओं, किशोरियों से संबंधित योजनाओं के बेहतर क्रियांवयन में ज्यादा सक्रिय है। स्कूल जाकर पूरी शिक्षण व्यवस्था का जायजा ले रही हैं। हर बच्चे को शिक्षा दिलवाने के लिए प्रयास कर रही हैं। गांव की महिलाओं को अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। आज ये महिला जनप्रतिनिधि समाज में व्याप्त सामाजिक कुरोतियों के खिलाफ आगे आ रही हैं। इन कुरीतियों को खत्म करने का काम कर रही है। ऐसी ही एक सामाजिक कुरीति बाल विवाह के प्रति वे लोगों को जागरूक कर रही हैं। अपनी ग्राम पंचायत में किशोरियों के समूह बनाकर बाल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथा पर निगरानी रखने की अपील कर रही है। इनका सपना है कि उनकी ग्राम पंचायत बाल विवाह मुक्त पंचायत हो और हर बालिका को शिक्षा का हक मिले। आइए, भीलवाड़ा जिले की ऐसी ही दो जागरूक महिला जनप्रतिनिधियों से रू-ब-रू होते हैं जो आज इस दिशा में खास पहल कर रही हैं।
बाल विवाह की हुई शिकार, अब सरपंच बन कर रही जागरूकः 16 साल की उम्र में ही उसका बाल विवाह कर दिया। उसे कुछ समझ नहीं थी कि विवाह क्या होता है। शादी का क्या मायने है। सामाजिक दबाव में बाल विवाह को स्वीकार करना पड़ा। 27 साल की उम्र में वह सरपंच बनीं। सरपंच बनने के बाद उसने इस मुद्दे पर काम करने का बीड़ा उठाया है। अब उसका एक ही लक्ष्य है अपनी पंचायत को बाल विवाह से मुक्त करवाना। यहां बात हो रही है सरपंच पूनम अहीर की। भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा पंचायत समिति की सुरावास पंचायत की सरपंच पूनम अहीर बचपन में शादी जैसी कुरीति का सामना कर चुकी है। शादी के बाद उन्होंने बाल विवाह के दुष्प्रभावों को नजदीक से देखा। इसलिए आज वह इस कुरीति को खत्म करने का काम कर रही है। बाल विवाह के प्रति लोगों को जागरूक कर रही है। अपनी ग्राम पंचायत में किशोरियों के समूह बनाकर बाल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथा पर निगरानी रखने की अपील कर रही है।
poonem-ahirपूनम पहली बार सरपंच बनीं। वह 10वीं तक पढ़ी है। 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। उस वक्त वह 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी। शादी के बाद उन्होंने 10वीं की परीक्षा ओपन से दी। सरपंच बनने के बाद भी वह आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन माइग्रेशन प्रमाण-पत्र नहीं मिल पाने के कारण वह 12वीं का फार्म नहीं भर पाई। सरपंच बनने के बाद पूनम को कई कठोर फैसले लेने पड़े। पंचायत की पहली बैठक में उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर बाल-विवाह का मुद्दा सबके सामने रखा। कहा मैं खुद बाल विवाह की शिकार हूं। मैं चाहती हूं कि मेरी पंचायत में अब किसी का भी बाल विवाह न हो। अपनी पंचायत के सभी वार्ड पंचों को बाल विवाह में नहीं जाने के लिए पाबंद किया।
पूनम ने अपने ही ससुराल पक्ष में हो रहे एक बाल विवाह का विरोध किया और कह दिया अगर आप बाल विवाह करेंगे तो हम आपके यहां नहीं आएंगे। पूनम कहती है, ‘‘ससुराल पक्ष में चार लड़कियों की एक साथ शादी हो रही थी। इनमें से एक लड़की की उम्र 17 साल ही थी। मैंने उसकी शादी का विरोध किया और कहा कि मैं आपकी बहू बाद में हूं पहले इस गांव की सरपंच हूं और इस नाते मुझे लोगों को जवाब देना होगा, पर परिवारवाले नहीं माने। मैं और मेरे पति ने चेतावनी दी और शादी में नहीं आने की बात कहीं। वो मुझे नाराज नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें मुझसे काम जो करवाना था। इसलिए उस लड़की की शादी नहीं की और बाल विाह रुक गया।’’ इसी तरह पूनम की शिकायत पर एक और बाल विवाह रुक पाया। पूनम कन्या भू्रण हत्या, बाल विवाह व दहेज जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है। कहती है, ‘‘मैं अपने जैसी बाकी महिलाओं को यह संदेश देना चाहती हूं कि लड़कियों को पढ़ाओ और बेटा-बेटी में कोई फर्क न करो।’’

दीपिका
दीपिका
किशोरी समूह के माध्यम से कर रही जागरूकः भीलवाड़ा जिले की सहाड़ा तहसील के खांखला पंचायत की सरपंच दीपिका सोनी की गिनती उन महिला सरपंचों में होती हैं जो अपने गांव की तस्वीर बदलने का माद्दा रखती हैं। दीपिका ने अपनी ग्राम पंचायत खांखला में बालिकाओं को साथ लेकर उनके मुद्दों पर काम करना शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पंचायत में बालिकाओं के साथ बैठकें करना शुरू किया। उन्होंने बालिकाओं से विभिन्न मुद्दों को लेकर चर्चा की। पूछा कि उन्हें क्या परेशानी है।
उन्होंने अपनी पंचायत में आयोजित ग्राम सभा में अपनी पंचायत को बाल विवाह मुक्त करने के लिए महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी लिए। दीपिका कहती है, ‘‘मेरी पंचायत में लोग अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ाते। उनकी छोटी उम्र में शादी करवा देते हैं। मैं यह सब रोकना चाहती हूं। दीपिका बालिका शिक्षा की अहमियत को समझती है। कहती है, ‘‘मेरे अनुसार किसी गांव के बिजली और पानी की सुविधा से ज्यादा बालिका शिक्षा की जरूरत है। बालिका शिक्षा होगी तो वह अन्य लोगों को भी शिक्षित करेगी।’’
दीपिका अपनी पंचायत को बाल विवाह मुक्त पंचायत बनाने का सपना देखती है। इस साल आखातीज पर खांखला में बाल विवाह होने की सूचना दीपिका को किशोरी समूह ने दी। दीपिका ने किशोरी समूह के साथ मिलकर उन परिवारों को समझाया कि वो अपनी बच्चियों का बाल विवाह ना करें। किशोरी समूह द्वारा दी जानकारी और दीपिका के प्रयासों के चलते समय रहते तीन बालिकाओं का बाल विवाह रुक पाया। आज वो तीनों लड़कियां कॉलेज की पढ़ाई कर रही हैं। दीपिका कहती है, ‘‘हम उम्र होने के कारण गांव की किशोरियां मुझसे अब बिना झिझक बात करती हैं। मैं उनके लिए एक मित्र की तरह हूं वो भी मुझे अपना दोस्त समझती हैं।’’
दीपिका शिक्षा पर काम को लेकर खासी उत्साही है। शिक्षा पर बने कानून
बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागा
‘‘निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2010’’ को वे अपनी पंचायत के गांवों में लागू करवाना चाहती हैं। सरपंच बनने के बाद उन्होंने 60 बच्चों का नामांकन करवाया। वे स्कूल जाकर पूरी शिक्षण व्यवस्था का जायजा लेती हैं। गांव की महिलाओं को अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं। हर बच्चे को शिक्षा दिलवाने के लिए प्रयास कर रही हैं। खांखला ग्राम पंचायत में किशोरी समूह बना है। दीपिका समूह की बैठकों में लगातार जाती है। उन्होंन इन किशोरियों से संवाद किया। उन्हें लगा कि किशोरियां अपनी बात या कोई समस्या बताने में झिझकती हैं तो उन्होंने खांखला की सरकारी स्कूल में 5 माह पहले एक शिकायत पेटी लगवाई ताकि किशोरियां मौखिक नहीं तो लिखित में अपनी बात बता सकें।

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