तूं क्यों दुखी है

डा. एम. एस. फोगाट
डा. एम. एस. फोगाट
भगवन की मेर है, समय का फेर है
देर सवेर है , गीदड़ भी शेर है
गदगद वे सब हैं, देता वो रब है
तेरी गायब हसीं है, क्या गाडी फँसी है
उनको सुकूँ है , तो तूं क्यों दुखी है

सबकी मदद में, रिश्तों की हद में
उनके जो त्याग में , कष्टों की आग मैं
दिल की चुभन में , काटों के वन में
तेरे बदन में , क्यों कंटक लड़ी है
उनको सुकूँ है , तो तूं क्यों दुखी है

गैरों के मेल में, दुनिया के खेल में
बढ़ती सी बेल में, चलती सी रेल में
मीठा सफर है , ये रब का असर है
क्यों निकला सा दम है , चेहरे पे गम है
उनको सुकूँ है , तो तूं क्यों दुखी है

रिश्तों के साथ में, सबके विकास में
शिक्षा के साथ में , सुदिन की आस में
सावन की घास में , बढ़ने के साथ में
तेरी जलन क्यों , प्रतिशोध भरी है
उनको सुकूँ है , तो तूं क्यों दुखी है

सहयोगी सहयोग में , कष्टों के रोग में
कर्मों के योग में, फलों के भोग में
पूरा खगोल है , भगवन का रोल है
ईश्वर पर छोड़ने में, चैन छुपी है
उनको सुकूँ है , तो तूं क्यों दुखी है

डॉ मोहिंदर सिंह फोगाट

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