“एक कप कॉफ़ी”

urvashiबारिश के पहले
पहले दौर की
भीगती हुई
किसी शाम में
कुछ देर बस यूं ही
खिड़की के सहारे
अनमने से खड़े हुए
देखा होगा तुमने
बड़े लंबे वक़्त से
पत्तियों से लिपटी हुई
मिट्टी की गर्द को
धीरे धीरे उतरते हुए
झुलसाती तपिश के
आलिंगन में छटपटाते
दरख़्तों को
पूर्ण तन्मयता के साथ
शाखें पसारे भीगते हुए।
अपने हिस्से में आयी
हर बून्द को समेटते हुए।
और
जब थमती हैं बारिश
हो जाता है पुराना
सब कुछ नया
धुला व निखरा
अपनी सम्पूर्ण उर्जा के साथ
छिटके रंगों को
देखा होगा जो
बिखर देते हैं
आकाश के
किसी टुकडे पर
इन्द्रधनुष।
बस
उस एक लम्हा
कुछ ऐसा ही अहसास
होता है मुझे
तुम्हारे साथ
एक कप कॉफी पीते हुए।

.उर्वशी

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