शोषण की नई भाषा गढ़ता ‘फंसाने’ का चलन और बच्‍चियां

Photo Courtsy: Google
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कल अंतर्राष्‍ट्रीय बालिका दिवस पर बेटियों के लिए बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा भी। सभी कुछ बेहद भावनात्‍मक था। कल इसी बालिका दिवस पर बच्‍चियों को सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ी सौगात दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने बालविवाह जैसी कुरीतियों पर प्रहार करते हुए ऐतिहासिक निर्णय दिया कि अब नाबालिग पत्‍नी से संबंध बनाने को ‘रेप’ माना जाएगा और इसमें पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत कार्यवाही होगी।
आदेश का सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू यह है कि उक्‍त निर्णय देश के सभी धर्मों, संप्रदायों और वर्गों पर समान रूप से लागू होगा। कोर्ट ने इसके साथ ही रेप के प्रावधान आईपीसी की धारा 375 के ‘अपवाद’-2 में जो उम्र का उल्‍लेख ’15 से कम नहीं’ दिया गया है, को हटाकर ’18 से कम नहीं’ कर दिया। इस ‘अपवाद-2’ में 15 वर्ष की उम्र वाली लड़की के साथ विवाह के उपरांत यौन संबंध बनाने को ‘रेप नहीं’ माना गया था।

ज़ाहिर है ये ‘अपवाद-2’ ही उन लोगों के लिए हथियार था जो बालविवाह को संपन्‍न कराते थे। बाल विवाह निवारण कानून की धारा 13 से प्राप्‍त आंकड़े बताते हैं कि हर अक्षय तृतीया पर हमारे देश में हजारों बाल विवाह होते हैं, जिसके बाद कम उम्र की दुल्‍हनें यानि बच्‍चियों को यौनदासी बनने पर विवश किया जाता है।
हम सभी जानते हैं कि दंड के बिना कोई भी कुरीति से जूझना आसान नहीं होता है क्‍योंकि यह समाज में घुन की तरह समाई हुई है। ऐसे में यह ऐतिहासिक फैसला इससे निपटने के लिए बड़ा हथियार साबित होगा। बच्‍चियों के हक में इसके दूरगामी परिणाम भी अच्‍छे होंगे। हम जानते हैं कि पति-पत्‍नी के बीच ‘बराबरी के अलावा जीवन व व्‍यक्‍तिगत आजादी का अधिकार’ देने वाले कानून भी हैं मगर विवाहित नाबालिगों के साथ ज्‍यादती भी तो कम नहीं हैं।

बच्‍चियों के शारीरिक व मानसिक विकास की धज्‍जियां उड़ाई जाती रही हैं, और यह सिर्फ इसलिए होता रहा क्‍योंकि सरकारें विवाहोपरांत संबंध को परिभाषित करते हुए रेप की धारा में ‘अपवाद-2’ को जोड़कर बालविवाह बंद करने का फौरी ढकोसला करती रहीं और बच्‍चियां इनकी भेंट चढ़ती रहीं। इतना ही नहीं, यौन संबंध बनाने को सहमति की उम्र भी 15 से बढ़ाकर 18 तब की गई, जब निर्भया केस हुआ।

इंडिपेंडेंट थॉट नामक संगठन की याचिका पर दिए गए इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह व्‍यवस्‍था दी है कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्‍नी के साथ सेक्‍स ‘रेप’ ही होगा और लड़की की शिकायत पर पुलिस रेप का केस दर्ज कर सकती है।

कोर्ट के आदेश की आखिरी लाइन ”लड़की की शिकायत मिलने पर पुलिस रेप का केस दर्ज कर सकती है” बस यही आखिरी लाइन कोर्ट के फैसले की इस नई व्‍यवस्‍था के दुरुपयोग की पूरी-पूरी संभावना पैदा करती है। मेरी आशंका उस आपराधिक मानसिकता को लेकर है जो हर कानून को मानने से पहले उसके दुरुपयोग के बारे में पहले ही अपने आंकड़े बैठा लेती है।

दहेजविरोधी कानून, बलात्‍कार विरोधी कानून, पॉक्‍सो, यौन शोषण की धाराएं किस कदर मजाक का विषय बन गए हैं, इसके उदाहरण हर रोज बढ़ते जा रहे हैं। अनेक निरपराध परिवार जेल में सिर्फ इन कानूनों के दुरुपयोग की सजा भुगत रहे हैं। अब महिला-पुरुष के बीच स्‍वाभाविक संबंध भी आशंकाओं से घिरते जा रहे हैं। इन सभी कानूनों को अब महिलाऐं भी ब्‍लैकमेलिंग के लिए खूब प्रयोग करने लगी हैं।

कार्यस्‍थल पर महिला कर्मचारी हों या घरों में काम करने वाली मेड, मन मुताबिक शादी न होने पर ‘बहू’ द्वारा दहेज मांगने का आरोप लगाने का चलन हो या अपनी बच्‍ची या बच्‍चे को आगे कर पॉक्‍सो के तहत ‘फंसाने’ का चलन। इन सबका दुरुपयोग जमकर हो रहा है मगर इन सामाजिक-उच्‍छृंखलताओं और बदले की भावनाओं का तोड़ तो तब तक नहीं हो सकता जब तक कि समाज के भीतर से आवाज न उठे।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इतना तो अवश्‍य होगा कि समाज की बेहतरी और ‘सच में पीड़ित’ बच्‍चियों के लिए लड़ने वालों को हौसला मिल जाएगा।

इन्‍हीं विषयों पर मैं कुछ इस तरह सोचती हूं कि-

रोज नए प्रतिमान गढ़े
रोज नया सूरज देखा
पर अब भी राहु की छाया का
भय अंतस मन से नहीं गया,
लिंगभेद का ये दानव,
अपने संग लेकर आया है-
कुछ नए राहुओं की छाया,
कुछ नई जमातें शोषण की,
कि सीख रही हैं स्‍त्रियां भी-
अब नई भाषाएं शोषण की।

-अलकनंदा सिंह

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