कभी सोचा न था

त्रिवेन्द्र पाठक
भाषा इतनी बदल जाएगी,
कभी सोचा न था।
सोच इतना नीचे आ जाएगी,
कभी सोचा न था।
आज सबको बस, खुद को,
सही साबित करने की होड है।
होड इस हद तक बढ जाएगी,
कभी सोचा न था।
जिस तरह आज,
मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा है,
ऐसा भी होगा,
कभी सोचा न था।
इन्सान न होकर वस्तु की तरह,
उपयोग किया जाएगा,
कभी सोचा न था।
और आदमी सिर्फ वोट के लिए,
इस्तमाल किया जाएगा,
कभी सोचा न था।

त्रिवेन्द्र कुमार पाठक

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