जिन्दगी की डगर,
एक स्वप्निल शहर,
चाहता हूँ मैं जो,
मिल जाये कही अगर,
हम कहे, वो भी हो,
जो चाहे, वो भी हो,
हो वो सब, जो जरुरत,
कोशिश उसी की हो,
जिन्दगी की डगर,
एक स्वप्निल शहर,
स्वस्थ सब ही रहे,
सद्भाव भी हो,
लोग आगे बढे,
वैसा काम भी हो,
जिन्दगी की डगर,
एक स्वप्निल शहर,
एक मर्यादा रहे,
ऐसे संस्कार भी हो,
हो वो सब कुछ यही,
जो किताबों में हो,
हो बस वही सब,
जो की बातों में हो,
जिन्दगी की डगर,
एक स्वप्निल शहर,
चाहता हूँ मैं जो,
मिल जाये कही अगर!
त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”
Trivendra Kumar Pathak
Harshita Computer’s & HP Solar Power
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