मिशन मून से पहले नदियों को जोड़ना जरूरी

ओम माथुर
देश के कुछ राज्यों में बाढ़ से हुई तबाही ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या हमारे देश में विकास की प्राथमिकताएं तय होती है या नहीं ? उत्तराखंड ,यूपी, बिहार,बंगाल ही नहीं,राजधानी दिल्ली में भी बरसात के बाद जो हालत होती है ,वह यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि मिशन मून की बात करने वाले देश में सड़क कब चलने लायक और सुरक्षित होगी? क्यों नदियों में बहने वाला पानी सड़कों पर नदियां बना देता है ? क्यों मामूली बारिश मे जगह-जगह जाम लग जाते हैं और क्यों नदियां उफान मारते हुए आसपास के लोगों को बरबाद कर देती है? यह कोई एक दो साल की नहीं, बल्कि सालों से होता रहा है । हर बारिश में देश में करोड़ों अरबों रुपए की बर्बादी होती है लाखों लोग बेघर हो जाते हैं । कई गांव और शहर उजड़ जाते हैं । लेकिन इन्हें बचाने के लिए कोई सरकार नहीं सोचती। आग लगने के बाद बुझाने की तैयारी की तरह बाढ़ आने के बाद बचाव की तैयारियां की जाती है और केंद्र सरकार बाढ राहत के नाम पर राशि देकर उस घाव का तत्काल इलाज करने की कोशिश करती है जो अब नासूर बनता जा रहा है । क्या ही अच्छा हो कि देश में बुलेट ट्रेन चलाने की बात करने से पहले हर गांव और शहर में इंतजाम किया जाए कि बरसात से सड़कों पर पानी एकत्र नहीं होगा। अच्छा हो कि 5 साल बाद चंद्रमा पर पहला भारतीय भेजने के ऊपर 10000 करोड़ खर्च करने से पहले नदियों को आपस में जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर ध्यान दिया जाए जिससे देश में बाढ़ की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी बलि्क पेयजल संकट भी खत्म हो जाएगा।
फिर नदियों को जोड़ने की योजना के लिए भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में प्रस्ताव भी आया था ।सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को पैसा करने के निर्देश दे चुका है और मोदी सरकार ने इसके लिए शुरुआती प्रयास भी किए थे । लेकिन लगता है यह सब कागजों में ही चलता रहता है । क्या ही अच्छा हो कि अभी भाजपा सरकार की अगुवाई कर रहे और पिछले दिनों वाजपेयी के निधन पर शोक में डूबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात का संकल्प लें कि नदियों को जोड़ने की योजना को वह पूरी करके वे वाजपेई को सच्ची श्रद्धांजलि देंगे। हो सकता है इस योजना में कई तकनीकी और आर्थिक अड़चनें हो। परन्तु जिस देश में उद्योगपति खरबों रुपए का बैंकों से कर्ज लेकर देश से चंपत हो जाते हो या उसे दबाए बैठे हो। उस देश में ऐसी कल्याणकारी योजना के लिए धन की कमी नहीं होनी चाहिए। अगर सरकार इसे मिशन के रूप में लें तो यह असंभव भी नहीं लगता और फिर मोदी ने तो वैसे भी देश के लोगों में अपनी कार्यशैली से उम्मीदें और उत्साह जगाया है । क्या भारत बुलेट ट्रेन,मिशन मून और मंगलयान जैसी योजनाओं पर ध्यान देने के बजाय पहले देश को सूखे ,बाढ़ और पेयजल संकट से बचाने के लिए नदियों को जोड़ने की जो कि इस योजना पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता?
-अब तक क्या-क्या हुआ-
परियोजना की अवधारणा:- हमारी नदियों का काफी पानी समुद्र में चला जाता है और उसे यदि रोक लिया गया तो पानी की प्रचुरता वाली नदियों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी पहुंचाया जा सकेगा, जिससे देश के हरेक भाग में हर किसी को समुचित जलापूर्ति हो पाएगी। लेकिन हाल के आंकड़े बताते हैं कि नहरों, तालाबों, कुओं और नलकूपों से एकत्र पानी का महज पांच प्रतिशत हिस्सा ही घरेलू उपयोग में लाया जाता है। नदियों को जोड़ने की अवधारणा यानी इंटरलिंकिंग आमजन एवं नीति-निर्माताओं के एक अच्छे-खासे हिस्से को अपील करती रही है। तीन दशक से ज्यादा हुए, जब के.एल. राव ने गंगा एवं कावेरी को जोड़ने का सुझाव दिया था। इस सुझाव का हामी दस्तूर प्लान का गार्डेन कैनाल बना, जिसमें देश की सभी प्रमुख नदियों को जोड़ने की बात कही गई थी। दोनों ही सुझावों ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है ।
परियोजना का इतिहास :– नदियों को जोड़ने की परियोजना नई नहीं है. 1858 में सर आर्थर थॉमस कार्टन ने विदेशी माल ढुलाई का खर्च कम करने के लिए दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने का सुझाव दिया था। इसके बाद, सन 1972 में डॉ. के एल राव ने गंगा और कावेरी नदी को जोड़ने का सुझाव दिया। लगभग 30 सालों तक प्रस्ताव विचार एवं परीक्षण के दौर से गुजरा और अंतत: आर्थिक तथा तकनीकी आधार पर अनुपयुक्त होने के कारण खारिज हुआ। नदी जोड़ परियोजना की चर्चा 1980 में भी हुई। एचआरडी मिनिस्ट्री ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। नेशनल परस्पेक्टिव फॉर वॉटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट नामक इस रिपोर्ट में नदी जोड़ परियोजना को दो हिस्सों में बांटा गया था- हिमालयी और दक्षिण भारत का क्षेत्र। 1982 में इस मुद्दे पर नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी के रूप में एक्सपर्ट्स की एक ऑर्गनाइजेशन बनाया गया। इसका काम यह स्टडी करना था कि नदियों और दूसरे जल संसाधनों को जोड़ने का काम कितना प्रैक्टीकल है। एजेंसी ने कई रिपोर्ट्स दीं, लेकिन बात वहीं की वहीं अटकी रही। उन्नीस सौ नब्बे के दशक में सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने की संभाव्यता के साथ-साथ जल संसाधन विकास की रणनीति की जांच के निमित्त एक आयोग का गठन किया। इसकी रिपोर्ट में इसके समर्थन की बात के साथ इस सतर्कता पर जोर डाला गया है कि नदियों को जोड़कर जलाधिक्य वाले क्षेत्र से जलाभाव वाले क्षेत्र में अतिरिक्त जल को भेजने से पूर्व सभी संबंधित पहलुओं पर भली-भांति विचार कर लिया जाए।
2002 में वाजपेयी ने पहल की:– अक्टूबर 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने सूखे व बाढ़ की समस्या से छुटकारे के लिए भारत की महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना को लागू करने का प्रस्ताव लाई थी। केंद्र ने नदियों को आपस में जोड़ने की व्यावहारिकता परखने के लिए एक कार्यदल का गठन किया। इसमें भी परियोजना को दो भागों में बांटने की सिफारिश की गई. पहले हिस्से में दक्षिण भारतीय नदियां शामिल थीं जिन्हें जोड़कर 1 कड़ियों की एक ग्रिड बनाई जानी थी। हिमालयी हिस्से के तहत गंगा, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनाई गई।
सर्वोच्च न्यायालय का केन्द्र को निर्देश:- 2002 में जनहित याचिका दायर हुई। उस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए सुझाव के अनुसार एनडब्ल्यूडीए ने देश की 37 प्रमुख नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव तैयार किया। अनुमान लगाया गया है कि नदी जोड़ों योजना के पूरा होने पर 25.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (17 लाख हेक्टेयर हिमालय क्षेत्र में और 8.5 लाख हेक्टेयर दक्षिण भारत में) में सूखे का असर कम होगा।
उच्चाधिकार समिति का गठन:- परियोजना के क्रियान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया. न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि नदी जोड़ो परियोजना को समयबद्ध तरीके के साथ लागू किया जाए.सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडिया, न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने 27 फरवरी 2011 को नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना के निर्णय में स्पष्ट किया कि न्यायालय के लिए संभव नहीं है कि वह परियोजना की संभावनाओं व अन्य तकनीकी पहुलुओं पर निर्णय कर पाए. सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के अनुसार यह काम विशेषज्ञों का है, साथ ही यह परियोजना राष्ट्र हित में है, क्योंकि इससे सूखा प्रभावित लोगों को पानी मिलेगा. सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के निर्णय के अनुसार गठित समिति नदी जोड़ो परियोजना के क्रियान्वयन की संभावनाओं पर विचार करेगी और उसे लागू करेगी.सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमुख नदियों को जोड़ने की योजना तैयार कर उसे 2015 तक क्रियान्वित करने का केन्द्र को निर्देश दे डाला। इसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने न्यायालय के निर्देश के अनुपालन के केन्द्र सरकार के फैसले की घोषणा करते हुए 2015 तक इस योजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक कार्यबल की नियुक्ति की है। सुरेश प्रभु के नेतृत्व में यह कार्यबल सक्रिय भी हुआ था।
60 नदियों को जोड़ने का प्लान :- योजना के पहले फेज को मोदी मंजूरी दे चुके हैं। प्लान के तहत गंगा समेत देश की 60 नदियों को जोड़ा जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि ऐसा होने के बाद किसानों की मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी और लाखों हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी। बीते दो सालों से मानसून की स्थिति अच्छी नहीं रही है। नदियों को जोड़ने से हजारों मेगावॉट बिजली पैदा होगी।

ओम माथुर/9351415379

error: Content is protected !!