बटन सेल से शिशु की दर्दनाक मौत

डॉ. अशोक मित्तल
पहली वर्ष गाँठ मनाने के बाद बटन सेल खा जाने से मेरे बचपन के एक मित्र के पोते क़ुहान की ह्रदय विदारक मौत हो गयी. ये बटन सेल क्या उपहार में आये किसी खिलोने का था, या किसी अन्य उपकरण का ये किसी को ज्ञात नहीं, न ये पता की सेल उसके हाथ में कैसे पहुंचा?
तोपदड़ा स्कूल, अजमेर में मेरे साथ पढ़े श्री गोपाल माथुर जो रिटायर होने से पूर्व RTDC, खादिम में मेनेजर के पद पर रह चुके थे, उन्होंने जून के आखिर में पोते की पहली साल गिरह पर अपने माता-पिता को सोने की सीड़ी चढ़ाई थी. खिलोनों व रिमोट आदि में आजकल सिक्के के आकार के बटन सेल लगते हैं. उफ्फ …….उसी सेल के निगलने से इस बच्चे की मुंबई में जान चली गयी..
साल गिरह के दुसरे ही दिन उसे नाना नानी के बीकानेर ले गए थे. जहाँ उसे उल्टियों और पेट दर्द के चलते डॉक्टर ने दवा लिख दी. 3-4 दिन बाद अजमेर आने पर भी ये तकलीफ बनी रही तो यहाँ भी उसे चिकित्सनों ने दवा दे दी. चूँकि माँ बाप दोनों मुंबई में कार्यरत है अतः 6-7 दिन बाद वो मुंबई चला गया.
लेकिन वहां जाने पर जब उसे खून की उलटी हुई तो 17 जुलाई को उसकी मम्मी उसे मुंबई के वोकार्ड हॉस्पिटल लेकर तुरंत पहुंची, जहाँ जांच करने पे चवन्नी के साइज़ का सिक्का पेट में दिखा. एंडोस्कोपी द्वारा इसे बाहर निकालने पर पता चला की ये तो बटन सेल था. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, लगातार हो रही खून की उल्टियों ने एक दिन बाद ही १८ जुलाई को उसकी साँसें समाप्त कर दीं..
मैनें बहुत ही भारी मन से गोपाल से फोन पर मुंबई बात की. उसके बाद काफी अफ़सोस और द्रवित ह्रदय से अपने मित्रों व रिश्तेदारों से ये बात शेयर की. जिन्होंने मुझे प्रेरित किया कि इतने बड़े हादसे के बारे में ब्लॉग लिख कर इस जान लेवा बटन सेल के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जानकारी दे कर उन्हें सचेत करना चाहिए. अतः मैनें जो जानकारी हासिल की है, उसे मैं सबके हितार्थ पेश कर रहा हूँ:-
बटन सेल आजकल खिलोनों, रिमोट, कैलकुलेटर, थर्मामीटर, कंप्यूटर आदि अनेक उपकरणों में बैटरी के रूप में लगता है. कान की हियरिंग ऐड का सेल तो दाल के साइज़ का होता है. एक प्रयोग में पाया गया है कि एक बटन सेल को यदि एक पतली रोटी, चीज़ स्लाइस, मटन की पतली स्लाइस पर रख कर थोडा पानी छिडका जाए तो बिजली के + और – का सर्किट पूरा होने से कुछ ही मिनटों में छन्न छन्न की आवाज़ के साथ बुलबुले उठने लगेंगे और विद्युत के प्रवाह से सेल के आसपास व उसके नीचे-ऊपर का टिश्यू जल जाएगा. ठीक ऐसा ही मुंह में निगलने के बाद होता है. ये बटन सेल अन्दर ईसोफेगस, स्टमक में जहाँ भी जा कर रुकता है वहीँ पे उसे जला देता है. इस वजह से खून का रिसाव चालु हो जाता है.
यदि गले में अटका है और कुछ ही मिनटों में निकाल दिया जाए तो भी जान तो बच सकती है लेकिन वोकल कार्ड के डैमेज से हमेशा के लिए आवाज़ जा सकती है.
कुहान के पिता का सोचना है की डॉक्टर भी अपने उपकरणों में यदि एक मेटल डिटेक्टर शामिल कर लें तो पेट में या गले में अटके सिक्के या बटन सेल का पता लगाया जा सकता है. वहीँ गोपाल माथुर का कहना है की काश बीकानेर या अजमेर में ही बच्चे का एक्सरे हो जाता तो शायद कुहान आज जीवित होता.
चिल्ड्रेन हॉस्पिटल्स के रिकार्ड्स के मुताबिक पूरे विश्व में पिछले बीस बरसों में ऐसे हादसों में तेजी से इजाफा हुआ है. हमारे यहाँ इन हादसों से कैसे बचा जाये, इस बाबत कोई दिशा निर्देश सरकारी तौर पर या सेल कंपनीयों व खिलौना कंपनीयों द्वारा जारी नहीं किये गए है.
अतः इस ब्लॉग के माध्यम से हमें ये जानकारी अधिकतम लोगों तक भेजनी है, जिसको पढ़कर ऐसे खिलोनों व उपकरणों के ये सेल बच्चों के हाथ नहीं लगें.

डॉ. अशोक मित्तल – मेडिकल जर्नलिस्ट

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