मैं भारत का नागरिक हूँ, लड्डू मुझे दोनो हाथ चाहिए

Ayush Laddha
बिजली मैं बचाता नहीं, पर बिल मुझे माफ़ चाहिए,
पेड़ मैं लगाता नहीं, पर हवा मुझे साफ चाहिए।
पानी की बचत से परहेज, पर पानी मुझे रोज चाहिए,
खुद चाहे कुछ न करूँ, सरकार से नित नई खोज चाहिए।
घर का कूड़ा बाहर फेंकूं, पर शहर शानदार चाहिए,
दफ्तर जाकर कामचोरी करूँ, पर वेतन मलाईदार चाहिए।
शिकायत करना मुझे आता नहीं, पर कार्रवाई तुरंत चाहिए,
‘ले दे कर’ मामला निपटना मेरी फितरत, पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिए।
मैं किसी को कुछ भी बोलूं, पर मेरी ऊंची नाक चाहिए,
पिछड़ों वाले लाभ उठाऊं, पर समाज में ऊंची साख चाहिए।
दूसरों पर मैं कटाक्ष करूँ, पर अपने बच्चों पर पूरे देश का नाज़ चाहिए,
जाति और धर्म के नाम पर मैं वोट दूं, पर दंगा मुक्त मुझे राज चाहिए।
टैक्स में करूँ सरे आम चोरी, पर विकास की रफ्तार चाहिए,
सोशल मीडिया पर जमकर फैलाऊँ नफरत, पर देश से मुझे प्यार चाहिए।
मैं भारत का नागरिक हूँ साहब,
लड्डू मुझे दोनो हाथ चाहिए।

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