-संजय सक्सेना, लखनऊ-
बात चाहंे ढाई साल की हो या फिर पांच साल की। इतना तय है कि 2017 का विधान सभा चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर लड़ा था और 2022 का चुनाव भी बीजेपी मोदी को ही आगे करके लड़ेगी। बीजेपी ने 2017 का चुनाव योगी को चेहरा बनाकर नहीं लड़ा था, इसलिए सीएम के तौर पर जब उनके नाम की घोषणा की गई थी,तब से लेकर आज तक यही मान कर चला जाता है कि वह प्रदेश की जनता से अधिक मोदी और शाह की पंसद थे।जनता ने मोदी के चेहरे पर वोट किया था,इसलिए योगी की ताजपोशी पर कोई उंगली भी नहीं उठा सकता था। यह बात योगी जी जानते और मानते दोनों हैं। समय-समय पर वह मोदी और शाह की शान में कसीदें भी पढ़ते रहते हैं। इसी लिए आज भी आम धारणा यही है कि योगी जी दिल्ली से ‘डिक्टेट’ होते हैं,लेकिन इस आधार पर योगी सरकार के कामकाज की समीक्षा नहीं की जाए यह न्यायोंिचत नहीं होगा। योगी सरकार ने ढाई वर्ष में क्या किया और क्या नहीं किया। यह बहस और चर्चा का विषय हो सकता था, लेकिन हकीकत यह भी है कि बीते ढाई सालों में कमजोर विपक्ष के चलते योगी सरकार की खामियांें पर वैसी चर्चा नहीं हो पाई जिसके सहारे प्रदेश की जनता को योगी सरकार के कामकाज का आईना दिखाया जा सकता था।
ढाई साल में योगी सरकार के लिए सब कुछ अच्छा नहीं रहा। इसी लिए अपनी सरकार की छवि को सुधारने के लिए कुछ समय पूर्व योगी ने अपने मंत्रिमंडल में भी बदलाव किया था, मगर वह मनमाफिक बदलाव नहीं कर पाए। ऐसा लगा वह ऊपरी प्रेशर में थे। किसी भी सरकार की कार्यशैली का सबसे बेहतर आंकलन विपक्ष ही कर सकता है। विपक्ष सवाल खड़ा करता है तो पूरे प्रदेश में मैसेज जाता है। जनता भी असलियत से रूबरू हो पाती है। परंतु योगी सरकार के सामने विपक्ष कभी मजबूती के साथ खड़ा दिखाई ही नहीं दिया।
अगर ऐसा न होता तो आजम खान के मसले पर योगी सरकार को घेरा जा सकता था। बीजेपी के पूर्व सांसद और मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर उन्हीं के कालेज की एक छात्रा ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, विपक्ष चाहता तो बीजेपी पर चिन्मयानंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए दबाव सकता था,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने यहां तक आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार बलात्कार के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद को उसी तरह से संरक्षण दे रही है, जैसे उसने उन्नाव मामले के आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को दिया था। उन्होंने ट्वीट कर कहा,‘उन्नाव बलात्कार मामले में भाजपा सरकार और पुलिस की लापरवाही व आरोपी को सरंक्षण दिए जाने का हश्र सबके सामने है।’प्रियंका ने कहा,‘अब भाजपा सरकार और उप्र पुलिस शाहजहाँपुर मामले में वही दुहरा रही है। पीड़िता भय में है, लेकिन भाजपा सरकार पता नहीं किस चीज का इंतजार कर रही है।’
इसी तरह से सोनभद्र में हुआ सामूहिक नरसंहार योगी सरकार के माथे पर किसी कलंक से कम नहीं था,लेकिन सरकार ने इसका ठीकरा भी कांग्रेस पर ही फोड़ दिया। प्रियंका ने सोनभद्र नरसंहार के खिलाफ जरूर तेजी दिखाई थी,लेकिन संगठन उनके साथ नजर नहीं आया। अखिलेश अपने घर के झगड़े से ही नहीं उभर पा रहे हैं। वहीं मायावती यही नहीं समझ पा रही हैं कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है्र। बिखरा विपक्ष योगी सरकार के लिए वरदान बन गया है।
इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि एक तरफ ढाई साल पूरे होने पर योगी जी प्रेस कांफ्रेस में कहते हैं कि उन्होंने लघु और सीमांत किसानों का कर्ज माफ किया है,जबकि एक दिन पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट, प्रदेश सरकार को फटकार लगा चुकी होती है कि वह किसानों के सभी बकाए एक माह में ब्याज सहित भुगतान कराएं। हाईकोर्ट ने योगी सरकार को यहां तक याद दिलाया कि कंट्रोल आर्डर के तहत खरीद से 14 दिन में गन्ने का भुगतान की बाध्यता है। हाईकोर्ट किसानों के कोर्ट के चक्कर लगाने से दुखी था,लेकिन विपक्ष किसानों की समस्याओं को कभी मुद्दा नहीं बना पाया।
आज भी प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बुरा हाल है। सरकारी अस्पतालों में स्टेªचर से लेकर आक्सीजन तक का अभाव है। कहीं डाक्टर मनमानी कर रहे हैं तो कहीं डाक्टरों पर काम का इतना बोझ है कि वह वीआरएस मांग रहे हैं। प्राथमिक स्कूलों की दुर्दशा में बदलाव के दावों में हकीकत कम फंसाना ज्यादा है। अतिक्रमण पर रोज कोर्ट की फटकार सरकार को सुननी पड़ती है। पुलिस की वसूली थमने का नाम नहीं ले रही है। बिजली के दाम बेतहाशा बढ़ा दिए गए हैं। जनता त्राहिमाम कर रही है। मगर विपक्ष कोई आंदोलन नहीं खड़ा कर सका।
लब्बोलुआब यह है कि योगी जी अपने काम से अधिक मोदी-शाह की निकटता के कारण ज्यादा ‘सुरक्षित’ लगते हैं।लोकसभा चुनाव से पूर्व ऐसा खबरें आ रहीं थीं कि चुनाव के बाद प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है,मगर योगी जी की किस्मत यहां भी रंग दिखा गईं। मोदी-शाह की जोड़ी के बल पर बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की तो इसमेें योगी का योगदान अपने आप जुड़ गया। अब शायद ही 2022 तक योगी को कोई छू पाएगा। वैसे अभी पंचायत और विधान सभा उप-चुनाव में भी योगी की परीक्षा होनी बाकी है। फिलहाल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सियासी करिश्मा अभी फीका नहीं पड़ा है। वह अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। इस बात की प्रबल संभावनाएं हैं।