क्या करें बयां कहानी

त्रिवेन्द्र पाठक
क्या करें बयां कहानी, अपने सफ़र-ए-इश्क़ की,
हमको अपनी जिन्दगी की, सारी हकीकत मिल गई।

आईना में आंखे, जब देखी अपनी “पाठक”,
आंसूओं में जिन्दगी की सारी कहानी मिल गई।

गजब़ का था, गुजरा वक्त जो साथ उसके,
यादों में मेरे सच कहूं, मुझको रवानी मिल गई।

वो घूमना, वो मस्तियां, वो मदमस्त शरारतें,
क्या कहूं, कैसे मुझे, मेरी जवानी मिल गई।

वो बिछडना, वो तडपना, और ये तन्हाईयां,
क्या बताएं “पाठक” आज, अब सजा ये बन गई।

कुछ और अब चाहत नहीं है जिन्दगी से मुझे,
जो थी चाहतें मेरी, भूली बिसरी एक कहानी बन गई।

✍त्रिवेन्द्र कुमार “पाठक”

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