सोच के देखो जला गाँव घर कैसा लगता है

१-सोच के देखो जला गाँव घर कैसा लगता है ।
मरता नहीँ परिंदा बे पर कैसा लगता है ।

२-जिन को कोई डरा नहीं पाया वो राही जब
मार दिये गये मंज़िल पर डर कैसा लगता है ।

३-आदमखोर छिपे बस्ती में,अपने अपने घर ।
काँप रहे अपनों से थर थर कैसा लगता है ।

४-अभी शाम को ही तो कंघी चोटी कर भेजी ।
नुची हुयी चुनरी पे जंफर कैसा लगता है ।

५-इश्क़ मुहब्बत प्यार वफ़ा की लाश पेङ पर थी।
श्यामी का फाँसी लटका वर कैसा लगता है ।

६-चुन चुन कर सामान बाँध कर रो रो विदा किया
जली डोलियों पर वो जेवर कैसा लगता है ।

७-बाबुल का सपना थी वो इक माँ की चुनरी थी ।
शबे तख़्त हैवान वो शौहर कैसा लगता है ।

८-छोटे बच्चे आये बचाने माँ जब घायल थी ।
वालिद के हाथों वो खंज़र कैसा लगता है ।

९-जिसके होने भर का ही अहसास डराता हो
बाँह गले में डाले अजगर कैसा लगता है

१०-जर्रे जर्रे पर बचपन की यादें छपी हुयीं
हके दुख़तरी छिना वो शहर कैसा लगता है

११-इंक़लाब के इश्क़ भरे नग़मे लिखने वाला
जख़्मी तन्हा कैद में शायर कैसा लगता है

१२-बाबा फाँसी चढ़े पिता सीमा पर मारे गए
बच्चे हैं मोहताज़ ये मंज़र कैसा लगता है ।

१३-राज किया सातों सागर के सीने पर जिसने
वो जहाज डूबा है पोखर कैसा लगता है

१४-‘सुधा’ कहानी कब थी उसकी सुनी गुनी जानी
मरने पर बेकफन बदन सर कैसा लगता है

सुधा राजे
सीनियर एडमिमिस्ट्रेशन आॅफिसर (ODRS)
41-C
सेक्टर -2
लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी
फगवाड़ा
पंजाब
पिन १४४४११

©Sudha Raje
©सुधा राजे

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