*विचार – प्रवाह*

नटवर विद्यार्थी
“च” वर्ण से निर्मित चमचा , चालू , चापलूस , चुगलखोर , चाटुकार आदि शब्द आपस में भाई – बंधु ही है जो आज हमारे आस- पास खड़े और पसरे हुए हैं । उपर्युक्त हर शब्द आज के युग में जीवंत है । इन सबमें चमचा शब्द जो पहले कभी रसोईघर में काम लिए जाने वाले एक बर्तन के रूप में सीमित था , आज अपनी सीमाएँ लाँघकर हर सरकारी , अर्ध्द सरकारी , राजनीतिक कार्यालयों एवं मंचों पर साक्षात रूप में मिल जाता है ।आज हर सिस्टम में चमचों की अहमियत है , उपलब्ध न होने पर उपलब्ध करवा भी दिए जाते है । इनके मिल जाने पर आत्मसंतुष्टि भी मिल जाती है । चमचे बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं । असंभव को संभव बनाने का मादा एवं करामात चमचों में ही होती है ।
यह भी सच है कि चमचा जिस पात्र में रहता है , धीरे – धीरे उसे खाली ही करता है अतः इनसे ज़्यादा निकटता भी काम की नहीं होती है पर इनकी सेवाओं के प्रति भी कृतज्ञ होना ही पड़ेगा । मैं तो यही कहूँगा –
करवाना हो आपको , चाहे जैसा काम ।
चमचा श्री को कीजिए , सर्वप्रथम प्रणाम ।।

– नटवर पारीक

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