ओवैसी की राजनीतिक हैसियत तभी तक है, जब तक उसके विवादास्पद और भड़काऊ बयानों को टीवी चैनलों पर महत्व मिलता रहता है। जिस दिन ऐसे लोगों को मीडिया में महत्व मिलना बंद हो जाएगा, इनकी बेतुकी बयानबाजी भी अपने आप बंद हो जाएगी। क्या जरूरत है हर बयान पर औवेसी की प्रतिक्रिया लेने की? क्या जरूरत है ओवैसी के बयानों पर दंगल करने की या ताल ठोकने की? क्या जरूरत है तो उसे इतना भाव देने की ? जब चैनल देश के जरूरी मुद्दों पर बहस नहीं कराते हैं,तो ओवैसी के बेतुके बयानों पर बहस की जरूरत क्या है? बोलने दीजिए उसे जो बोलते हैं,नजरअंदाज करना भी तो सीखिए।
ओम माथुर/अजमेर।