*पंछी और पतंग*

नटवर विद्यार्थी
मरते हुए पंछी ने व्यथित होकर
पतंग से पूछा
बहिन ! मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है,
अपनी डोर में उलझाकर
मुझे क्यों मारा है ?
मैं तो वैसे ही
डरा – डरा था
इंसानी क्रूरता से
अधमरा था ।
दूषित वातावरण में जीता था
ज़हरीला दाना खाकर
नदी-नालों का
गंदा पानी पीता था ।
तुम तो आपस में लड़कर
कटती हो , फटती हो
मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया
फिर मुझे किस गुनाह का
यह दण्ड दिया ?
मेरे प्रश्न का
शायद तुम उत्तर न दो
मुझे उत्तर लेकर भी
क्या करना है
दुनिया की रीत यही है
सबलों की लड़ाई में
किसी निर्बल को ही मरना है ।

– नटवर पारीक

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