सौ सुनार की,एक लोहार की

ओम माथुर
इसे कहते हैं सौ सुनार की और एक लोहार की। पिछले 6 साल से जिस तरह मीडिया कांग्रेस और उसके नेताओं की ऐसी- तैसी कर रहा है,उसे देखते हुए हो सकता है सोनिया गांधी ने अखबारों में दिए जाने वाले विज्ञापनों पर 2 साल तक रोक लगाने का सुझाव सोच-समझकर और रणनीति के तहत दिया हो।
दरअसल,वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मीडिया लगभग एकपक्षीय हो गया है । कई अखबारों और चैनलों में तो बाकायदा एजेंडा चलाकर कांग्रेस को निपटाने का प्रयास किया जा रहा है। कमजोर नेतृत्व के चलते कांग्रेसी भी मीडिया का मुकाबला करने में इतने बेबस हो गए कि न्यूज चैनलों पर अपने प्रवक्ता तक भेजने बंद कर दिए। कांग्रेस को पता है कि मीडिया अब उसके लिए बेगाना हो गया है। इसलिए सोनिया गांधी ने उसके विज्ञापन दो साल तक रुकवाने का मास्टरस्ट्रोक खेला है।
अब अगर मोदी विज्ञापन नहीं देने के सोनिया गांधी के सुझाव को मान इन्हें रोक देते हैं , तो मीडिया को उनका वह समर्थन नहीं मिलेगा, जो अब तक मिलता रहा है और अगर नहीं रोकते हैं, तो कांग्रेस को ये प्रचार करने का अवसर मिलेगा कि प्रधानमंत्री मोदी और सरकार को प्रचार का बहुत शौक है। विपक्ष ये आरोप लगाता रहा है कि मोदी सरकार मीडिया के बूते अपनी हर गलती, नीति छिपाने में कामयाब रहती है। क्योंकि मीडिया उसकी असलियत उजागर ही नहीं करता।
भारतीय समाचार पत्र संघ ने सोनिया गांधी के सुझाव की कड़ी निंदा करते हुए उनसे यह वापस लेने की मांग करके यह जाहिर कर दिया है कि बिना विज्ञापनों के अखबार निकालना मुश्किल नहीं नामुमकिन हो सकता है।

ओम माथुर/9351415379

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