‘अ साहब’

हास्य-व्यंग्य

शिव शंकर गोयल
‘अ’ साहब का वास्तविक नाम क्या था यह बात बहुतही कम लोगों को पता थी. उनके बचपन के सहपाठी तो खैर यह सब जानते थे क्योंकि उन्होंने ही ‘अ’ साहब को इस उपाधि से सुषोभित किया था बाकी लोगों को इस बारें में कम ही पता था. चूंकि वह हरबार बोलने से पहले ‘अ-अ-अ लगाया करते थे इसलिए उन्हें छोटे बडे सब ‘अ’ साहब ही कहते थे.
बचपन में जब यह खजानें के नोहरें स्थित प्रहलादजी मास्’साब की स्कूल में पढते थे तब की बात हैं. एक रोज पंडितजी ने क्लास में पूछा कि बताओ ‘अ’ के बाद कौनसा अक्षर आता है ? तो ‘अ’ साहब तो कुछ नही बोले लेकिन पास बैठे एक सहपाठी ने जवाब दिया कि सभी अक्षर ‘अ’ के बाद ही आते हैं.
स्कूल समय के उनके कई किस्सें मषहूर थे. मसलन, एक बार इतिहास की क्लास चल रही थी. मास्टर साहब ने ‘अ’ साहब से पूछा कि अजमेर को किसने बसाया था ? ‘अ’ साहब जवाब देने को खडे हुए और काफी देर तक अ-अ-अ करते रहे क्योंकि उन्हें इस बाबत पताही नही था. उधर मास्टर साहब ने समझा कि इन्हें पता तो है लेकिन यह बोल नही पा रहे हैं अतः मास्टर साहब ने इनको डांटा और कहा कि क्या अ-अ कर रहे हो, पूरा नाम बोलो कि अजयपाल ने बसाया था, अगर इस तरह ‘टैलिग्राफिक लेंगवेज’ में जवाब दोगे तो कैसे काम चलेगा ? पूरा नाम बोला करो. ‘अ’ साहब ने किसी तरह चैन की सांस ली और बैठ गए.
‘अ’ साहब ने किसी तरह गिरपड कर हाई स्कूल पास कर ली लेकिन नौकरी के लिए जहां कही भी जाते तो इन्टरव्यू में रह जाते क्योंकि ‘अ’ पर ही इतनी देर लगा देते कि वर्णमाला के बाकी अक्षरों का नम्बर ही नही आता. बाकी अक्षर बेचारे तरसते रह जाते. थकहार कर मां-बाप ने उन्हें घर के पास गली में ही एक दूसरी पान की दुकान के पास उनकी दुकान भी खुलवादी.

संयोग की बात कि दुकान चल निकली. हर कोई उनकी बोलचाल की षैली का आनन्द लेना चाहता और उनकी दुकान पर आ धमकता और कहता ‘अ’ साहब एक पान लगाना’’
‘‘अ कौन सा लगाउ ? मीठा पत्ता या देषी ’’ ‘अ’ साहब पूछते.
ग्राहक मुस्कराकर कहता ‘‘अ कोईसा भी लगादो, मसाला डाल देना, थोडी सुपारी और गुलकंद ज्यादा करना और हां थोडी सौंफ और इलाइची भी डाल देना’ ऐसे में हंसते हुए यह कह उठते कि कहो तो आपका रू. भी डालदूं ?
ग्राहक और ‘अ’ साहब दोनों मुस्करा उठते.
‘अ’ साहब की दुकान पर अक्सर कई लोग खडे रहते. उनमें से दो-एक तो ऐसे सरकारी कर्मचारी थे जो ऑफिस में हाजिरी लगााकर वहां से नौ दो ग्यारह हो जाते थे. काम के नाम पर या तो उन्हें कुछ करना-धरना नही होता था और कभी कभार कोई अफसर उन्हें कोई काम बता भी देता तो वह सत्रह बहानें बना देते थे या कागज स्टेष्नरी इत्यादि की इतनी मांग रख देते कि उन्हें काम की कहने वाला दुबारा कुछ कह ही नही पाता और इन कर्मचारियों को यह रहस्य मालूम ही था कि ‘न तो नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी’.
ऑफिस से भागकर यह लोग सीधे ‘अ’ साहब की पान की दुकान पर पहुंचते थे और वहां टीवी पर चल रहे क्रिकेट मैच पर तरह तरह के एक्सपर्ट कमैन्टस किया करते थे या वहां जम रही ताषपत्ती अथवा चौपड देखते रहते थे. इनकी एक खूबी और थी कि यह खेल की बाजी खत्म होने के बाद ही खिलाडियों को बताया करते थे कि तुम्हें यह पत्ता चलना चाहिए था, यह नही चलना चाहिये था इत्यादि.
एक बार ‘अ’ साहब दुकान पर गीले टाट के नीचे से पान निकाल-निकाल कर उलट-पलट रहे थे तभी एक एक्सपर्टस ने उनसे पूछा कि ‘अ’ साहब क्या आप हर दम अटकते हैं ? -उसका मतलब ‘अ’ साहब के अटक-अटक कर बोलने से था- तब ‘अ’ साहब ने जवाब दिया कि ‘‘अ-अ-अ… नही सिर्फ बोलते समय अटकता हूं’’ इस पर सभी खिलखिला कर हंस पडे.
उम्र हुई तो ‘अ’ साहब की षादी की बात चली. एक मजबूर परिवार की लडकी के पिता अपने एक रिष्तेदार के साथ ‘अ’ साहब के घर एक बुधवार को आ पहुंचे परन्तु पहले से पता होने से ‘अ’ साहब के जीजाजी ने एक योजना बनाई और जब लडकी के पिताजी ने ‘अ’ साहब से उनका नाम इत्यादि पूछा तो उनके जीजाजी ने उत्तर दिया कि यह बुधवार को मोैन रखते हैं इसलिए सब बातों का आपको लिखकर जवाब देंगे ओैर चूंकि लिखने में उन्हें कोई परेषानी नही थी उस रोज उनकी लाज रह गई. ‘अ’ साहब की षादी हो गई. परिवार बस गया और जिन्दगी चल निकली.
‘अ’ साहब की पत्नि को उन्हें पुकारना होता तो वह उन्हें कहती ‘अजी ! सुणों हो ? मुन्ना के बापू….’ जबकि उनके मित्रों की पत्नियां अपने आदमियों को ‘ऐजी’ कह कर बुलाती थी. कभी कभी वह भी दुकान पर बैठ जाया करती थीण् एक बार जब लोग देश की समस्याओं पर कुछ बातचीत कर रहे थे तो वह भी बोल पडी और कहा आजादी के बाद नेताओं ने देश के खूब चूना लगाया हैण् हालांकि मेरे यह भी चूना लगाते है लेकिन सिर्फ पान पर और वह भी पूछ पूछ करण्
एक बार एक व्यक्ति ने ‘अ’ साहब के विरूद्ध अदालत में मुकदमा दायर कर दिया कि इन्होंने मेरे से पांच हजार रू. उधार लिए थे वह वापस नही कर रहे हैं. ‘अ’ साहब के जीजाजी ने किसी तरह एक वकील तैयार किया और इन्हें लेकर कोर्ट पहुंचे. वहां जज ने ‘अ’ साहब से पूछा
‘ तुम्हारा नाम ?’
‘‘अ-अ-अ..’’ ‘अ’ साहब बोलने की कोषिष करने लगे.
इस पर जज ने पूछा कि
‘‘क्या तुमने वादी से पांच हजार रू. उधार लिए थे ?’’
‘‘अ-अ-अ… ’’ ‘अ’ साहब जवाब देने लगे.
इस पर जज साहब थोडा झुंझलाने लगे और पूछा कि ‘‘तुमने इनसे रू. उधार लिए है तो लौटा क्यों नही देते ?’’

‘‘अ-अ-अ’’ की ध्वनि करते हुए ‘अ’ साहब कुछ कहना चाहते थे लेकिन जब काफी देर तक अ-अ-अ के अलावा कुछ कह नही पाए तो जज ने झुंझलाकर इनके वकील को कहा कि इनको तुरन्त अदालत से लेजाएं तथा सामनेवाली पार्टी का दावा खारिज कर दिया. इस तरह उस रोज ‘अ’ साहब की अ-अ-अ की आदत काम कर गई लेकिन इससे भी ज्यादा मजा तब आया जब इनके वकील ने ‘अ’ साहब से अपनी फीस मांगी तो ‘अ’ साहब ने उससे भी यही कहा ‘‘अ-अ-अ’’
इस पर वहां पास खडे सभी व्यक्ति हंसने लगे और वकील साहब भी खिसियानी हंसी हंसने लगे. कहते है कि ‘अ’ साहब की बाकी जिन्दगी भी योंही अ-अ-अ करते कट गई.

ई. षिव षंकर गोयल
मो. 9873706333

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