-अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति के लिए कोई मापदंड नहीं, तो फिर अफसरों और कमर्चारियों की भर्ती के लिए मापदंड, परीक्षा व इंटरव्यू क्यों
जिस तरह राज्य सरकार ने राजस्थान लोक सेवा आयोग (राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन यानी आरपीएससी) में अध्यक्ष और चार सदस्यों के रिक्त पदों पर नियुक्तियां की हैं, उससे यह बात समझ में नहीं आती है कि यह एक संवैधानिक संस्था है या राजनीति की दुकान। पिछले दिनों सरकार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले भूपेंद्र यादव का जिस दिन सेवानिवृत्ति का प्रार्थना पत्र मंजूर किया, उसी दिन उन्हें आरपीएससी का अध्यक्ष बना दिया। इसी दिन आयोग के अध्यक्ष पद से पूर्व आईपीएस अधिकारी दीपक उप्रेती रिटायर हुए। यादव ने भी उसी दिन शाम को अजमेर पहुंच कर अध्यक्ष का पदभार संभाल लिया। इसी दिन सरकार ने पिछले कई महीनों से चार सदस्यों के रिक्त पदों पर भी नियुक्ति कर दी। लेकिन जिस तरह नियुक्ति की गई है, उससे यह सवाल पैदा गया है कि आखिर ऐसी नियुक्तियों के लिए कोई मापदंड होते हैं या नहीं, या फिर सरकार अपनी मनमर्जी से जिसे चाहे, नियुक्ति से उपकृत कर दे। ऐसा नहीं है कि इस तरह नियुक्तियां मौजूदा कांग्रेस सरकार ने ही की हैं, पूर्ववर्ती भाजपा सरकार भी करती रही है। यदि किसी मापदंड, नियम और चयन प्रक्रिया को अपनाए बिना इस तरह नियुक्तियां की जाती हैं तो यह सवाल भी पैदा होता है कि आरपीएससी के माध्यम से राजस्थान प्रशासनिक सेवा व अधीनस्थ सेवा के अधिकारियों, कॉलेज लेक्चरर्स, डॉक्टर्स व अधिकारियों के अन्य पदों पर भर्ती के लिए प्रारंभिक परीक्षा (प्री एग्जाम), मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू क्यों कराए जाते हैं। मंत्रालयिक कर्मचारियों, स्कूली शिक्षकों और अन्य छोटे पदों पर भर्ती के लिए परीक्षाएं क्यों कराई जाती हैं। जानकारी के लिए बताना लाजिमी है कि किसी भी राज्य में लोक सेवा आयोग सहित संघ लोक सेवा आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं में अध्यक्ष व सदस्यों के पदों पर नियुक्ति होने के बाद किसी को भी कोई भी सरकार चाहकर भी नहीं हटा सकती है। उनकी नियुक्ति छह साल या आयु 62 वर्ष होने तक (जो भी पहले हो) के लिए की जाती है। किसी भी आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को कोई गंभीर मसला सामने आने पर संसद में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने, उस पर बहस होने और प्रस्ताव पास होने की स्थिति में ही हटाया जा सकता है। बहरहाल, सरकार ने नियुक्ति तो कर ही दी है, जिसका खुद कांग्रेसी विरोध कर रहे हैं। जिन दो महिलाओं को सदस्य बनाया गया है, उनमें एक कवि, किसी समय आम आदमी पार्टी (आप) के नेता रहे और कांग्रेस के कद्दावर नेता राहुल गांधी को पप्पू बताने वाले कुमार विश्वास की पत्नी हैं। अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार ने किसके प्रति अपनी आस्था जताई है, राहुल गांधी के प्रति या कुमार विश्वास के प्रति।
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।