अनूठी संस्कृति : चौराहे, तिराहे व मार्ग के भी देवता होते हैं?

हिंदू धर्म में तैंतीस कोटी अर्थात करोड़ देवी-देवता माने जाते हैं। हालांकि इसको लेकर मतभिन्नता भी है। कुछ जानकारों का कहना है कि कोटि का अर्थ करोड़ तो होता है, मगर कोटि का अर्थ प्रकार भी होता है। उनका कहना है कि देवता तैंतीस कोटि अथवा प्रकार के होते हैं। जो कुछ भी हो, मगर यह पक्का है कि देवी-देवता अनगिनत हैं। हम तो पेड़-पौधे यथा तुलसी, पीपल, कल्पवृक्ष, बड़, आंवले के पेड़ इत्यादि में भी देवता मान कर उनकी पूजा करते हैं। हरियाली अमावस्या पर कल्पवृक्ष की विशेष पूजा की जाती है। आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ को पूजा जाता है। खेजड़ी, रात की रानी के पेड़ व बेर के झाड़ी में भूत-प्रेत का वास माना जाता है। इसी प्रकार पशु-पक्षी यथा गाय में सभी देवताओं व कुत्ते में शनि और बंदर में हनुमान जी की धारणा करते हैं। पहली रोटी गाय व आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकाली जाती है। काली गाय व काले कुत्ते का तो और भी अधिक महत्व है। बंदरों को केला खिलाने की परंपरा है।
आपकी जानकारी में होगा कि बंदर में हनुमान जी की मौजूदगी की मान्यता के कारण उसकी मृत्यु होने पर बाकायादा बैकुंठी निकाली जाती है। करंट से बंदर की मृत्यु हो जाने पर करंट वाले बालाजी के मंदिर कई शहरों में बनाए जा चुके हैं। इसी प्रकार सांड का अंतिम संस्कार करने से पहले बैकुंठी निकाली जाती है। कबूतर, चिडिय़ा इत्यादि को दाना डालने के पीछे भी देवताओं को तुष्ट करने का चलन है। ऐसी मान्यता है कि मकान की छत पर पूर्वजों की मौजूदगी है, इस कारण कई लोग वहां पक्षियो के लिए दाना बिखरते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौए के लिए ग्रास निकाला जाता है। उल्लू को लक्ष्मी का वाहन माना जाता है। चींटी के माध्यम से शनि देवता को प्रसन्न करने के लिए कीड़ी नगरे को सींचते हैं। कई लोग चूहे को इस कारण नहीं मारते कि वह गणेश जी का वाहन है। जलचरों में मछली को दाना डालने की परंपरा है। जल, धरती, वायु इत्यादि में भी देवताओं के दर्शन करते हैं। यहां तक कि पत्थर की मूर्ति बना कर उसमें विभिन्न प्रकार के देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा करके उसे पूजते हैं। निहायत तुच्छ सी झाड़ू में लक्ष्मी का वास होने की मान्यता है, इस कारण उसे गुप्त स्थान पर रखने व पैर न छुआने की सलाह दी जाती है। छिपकली में भी लक्ष्मी की मौजूदगी मानी जाती है। कहते हैं कि दीपावली के दिन अगर छिपकली दिखाई दे जाए तो समझिये कि लक्ष्मी माता ने दर्शन दे दिए हैं। वास्तु शास्त्र की बात करें तो हर रिहाहिशी मकान व व्यावसायिक स्थल और ऑफिस का अपना अलग वास्तु पुरुष है, जो कि विभिन्न देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। और तो और चौराहे, तिराहे व मार्ग तक में भी देवता की उपस्थिति होने की मान्यता है।
मैंने देखा है कि चाय की दुकान करने वाले सुबह सबसे पहली चाय चौराहे, तिराहे या मार्ग को अर्पित करते हैं। इसी प्रकार नाश्ते की दुकान करने वाले भी भोग लगाते हैं। इस बारे में उनसे चर्चा करने पर यह निष्कर्ष निकला कि हालांकि उन्हें इसका ठीक से पता नहीं कि वे किस देवता को प्रसाद चढ़ा रहे हैं। वे तो परंपरा का पालन कर रहे हैं। फिर भी यह पूछने पर आपके भीतर ऐसा करते वक्त क्या भाव उत्पन्न होता है, तो वे बताते हैं कि चौराहे, तिराहे व मार्ग पर स्थानीय देवता की मौजूदगी है, चाहे उसका कोई नामकरण न हो। हम उनकी छत्रछाया में ही व्यवसाय करते हैं, इस कारण उनकी कृपा दृष्टि के लिए प्रसाद चढ़ाते हैं।
चौराहे, तिराहे या मार्ग का महत्व तंत्र में भी है। नजर उतारने सहित अनके प्रकार के टोने-टोटके के लिए इन स्थानों का उपयोग किया जाता है। आपने देखा होगा कि कई लोग किसी टोटके के तहत नीबू, कौड़ी, गेहूं, लाल-काला कपड़ा, दीपक, छोटी मटकी इत्यादि रखते हैं। यही सलाह दी जाती है कि उनको न छुएं। इसका मतलब ये हुआ कि तंत्र विद्या में भी इन जगहों पर शक्तियों का वास माना गया है।
है न हमारी सनातन संस्कृति सबसे अनूठी। शास्त्र तो कण-कण में भगवान की उपस्थिति मानता है। बताते हैं गीतांजलि काव्य के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाले श्री रविन्द्र नाथ टैगोर का जब ईश्वर से साक्षात्कार हुआ तो उन्हें हर जगह उसके दर्शन होने लगे। भावातिरेक अवस्था में वे पेड़ों से लिपट कर रोया करते थे। लोग भले ही इसे पागलपन की हरकत मानते हों, मगर वे तो किसी और ही तल पर जीने लगे थे।

-तेजवानी गिरधर
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