नौकरी करें तो कोरोना का डर, नहीं करें तो सरकार का डर

-बेचारे सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, पुलिस वाले और चिकित्सा कर्मी करें भी तो क्या करें
-अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर निभा रहे हैं फर्ज
-निर्धारित समय से कई गुणा ज्यादा कर रहे हैं ड्यूटी
-इन सभी योद्धाओं को सलाम, लेकिन हम भी समझें अपनी जिम्मेदारी, कुछ दिन घर में क्यों नहीं टिक सकते हैं

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉पिछले साल 2020 में 23 मार्च से करीब ढाई महीने तक लॉकडाउन चला था, तो पुलिस वाले सड़कों पर ड्यूटी दे रहे थे। चिकित्सा कर्मचारी व डॉक्टर मरीजों की सार-संभाल करने में रात-दिन एक किए हुए थे। जिला प्रशासन के अलावा निकायों के कार्मिक भी आधी-आधी रात तक अपना फर्ज निभा रहे थे। इन सभी का फर्ज निभाने के साथ-साथ यह मकसद भी था कि आमजन महफूज रहें। अब इन सभी योद्धाओं की विडंबना कहिए या मजबूरी, इनके साथ एक तरफ कुआं-दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है।

प्रेम आनंदकर
आमजन की तरह इनको भी कोरोना की चपेट में आने की आशंका सताती है। लेकिन क्या करें। ड्यूटी नहीं करें तो सरकार का डर और ड्यूटी करें तो कोरोना का डर हर समय सताए रहता है। इस डर के बावजूद यह सभी योद्धा अपना फर्ज निभा रहे हैं। भीषण गर्मी और तेज धूप में सिपाही सड़कों पर दिनभर ड्यूटी देते हैं तो इनमें से कई पुलिस वाले आंखों में नींद को समेटे रात में अपना फर्ज निभाते हैं। सफाई कर्मचारी कोरोना संक्रमण से आमजन को बचाने के लिए जुटे हुए हैं। अन्य सभी अनिवार्य सेवाओं के कर्मचारी भी कोरोना की परवाह किए बिना बेनागा ड्यूटी कर रहे हैं। इन सभी के भी माता-पिता, पत्नी-बच्चे हैं, लेकिन क्या करें। एक हम हैं, जो कोरोना गाइड लाइन की धज्जियां उड़ाने में अपनी शान समझ कर बिना वजह या किसी ना किसी बहाने से घर से बाहर निकल रहे हैं। क्यों नहीं हम इन सभी कोरोना योद्धाओं का सम्मान करते हुए घर में रहते हैं। हम इनकी परिस्थितियों को समझें। यदि हम कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ेंगे तो यह सभी योद्धा भी अपने परिवार के साथ ताजिंदगी खुश और सुरक्षित रह सकेंगे।

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