-ना योजना है, ना कार्ययोजना, तीन साल से जिला इकाइयों का पुनर्गठन भी नहीं हुआ
-दोनों दलों के रणबांकुरे हो गए हैं तैयार
-उम्मीदवार और नेता-कार्यकर्ता बाजुओं का कितना दम दिखा पाते हैं, यह मैदान-ए-जंग में पता चल जाएगा
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉’’ना सूत ना कपास, जुलाहे से लट्ठमलठा’’, यह स्थिति कमोबेश कांग्रेस की है। ना योजना है, ना कार्ययोजना है। ना तीन साल से शहर व देहात जिला इकाइयों के संगठन का पुनर्गठन हुआ है और ना ही अधिकांश जिलों में पार्टी के स्थाई कार्यालय हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही गोविंदसिंह डोटासरा ने कमोबेश सभी शहर व देहात जिला इकाइयों को भंग कर दिया था, लेकिन तब से अब तक करीब तीन साल में इन इकाइयों का पुनर्गठन नहीं कर पाए हैं। इसलिए अधिकांश जिलों में ना शहर और ना ही देहात जिला अध्यक्ष सहित अन्य पदाधिकारी बनाए गए हैं।
वर्तमान में शहर व देहात जिला संगठन के नाम पर पुराने यानी निवर्तमान पदाधिकारी ही मोर्चा संभाले हुए हैं। अरे भाई, जब आप पिछले करीब तीन साल में अपने संगठन का पुनर्गठन नहीं कर पाए हैं, तो आप किससे संगठन का काम करने की उम्मीद करेंगे। जो वर्तमान में पदाधिकारी ही नहीं हैं, वे क्यों पार्टी उम्मीदवारों के लिए लोकसभा चुनाव में काम करेंगे। आपने विधानसभा चुनाव भी बिना संगठन के ही लड़ लिया। और अब भी ऐसा करेंगे। बिना नेतृत्व के कार्यकर्ता कितना काम करते हैं, यह आप भी अच्छी तरह जानते हैं। और फिर जो निवर्तमान पदाधिकारी हैं, वे किसलिए और किसके लिए अपनी जेब का टका खर्च करेंगे। कांग्रेस ने ना विधानसभा चुनाव के लिए कोई ठोस रणनीति बनाई थी और ना ही अब लोकसभा चुनाव के लिए बनाई है। महज यह कह देने से कोई भी चुनाव नहीं जीता जा सकता है कि पूरी कांग्रेस और सभी कांग्रेसजन एकजुट हैं और हमने चुनाव की पूरी तैयारी कर ली है। आपने चुनाव की कितनी तैयारी की है और कितने आपके कार्यकर्ता तैयार हैं, यह तो आप ही अच्छी तरह जानते और बता सकते हैं, लेकिन भाजपा ने जिस तैयारी के साथ विधानसभा चुनाव लड़ा था, उसका नतीजा आपके सामने हैं और अब उसी तैयारी के साथ वह लोकसभा चुनाव लड़ने वाली है। हो सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा की कुछ सीटें कम हो जाएं, लेकिन जिस तैयारी के साथ भाजपा मैदान में आई है, उससे यही लगता है कि वह इस बार भी कांग्रेस से ही आगे रहेगी। अब भाजपा को कुछ सीटों पर नुकसान होने की असल वजह बगावत और बड़े नेताओं का पार्टी छोड़कर कांग्रेस में जाना भी हो सकता है, किंतु यही बात कांग्रेस के लिए भी लागू हो सकती है, क्योंकि उसके भी कई बड़े नेता भाजपा में गए हैं। आयाराम-गयाराम के इस दौर में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही हुआ है। भाजपा के तो गिने-चुने बड़े नेता कांग्रेस में गए हैं, लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता तो बड़ी संख्या में भाजपा में गए हैं। आपको यह भी बता दें कि कमोबेश अधिकांश जिलों में भाजपा की शहर और देहात इकाइयों के साझा कार्यालय बना दिए गए हैं, जबकि कांग्रेस इतने साल सत्ता में रहने, बड़ी पार्टी होने के बाद भी आज तक अनेक जिलों में शहर और देहात इकाइयों के कार्यालय नहीं बना पाई है। यही कारण है कि अनेक जिलों में स्थाई कार्यालय नहीं है। जो भी अध्यक्ष रहे, या तो उनके निजी दफ्तर या आवास से ही कांग्रेस के कामकाम चलाए जाते रहे हैं या चलाए जा रहे हैं। आज भी यही स्थिति है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अजमेर ही है, जहां पहले जयपुर रोड पर सूचना केंद्र के सामने मदन निवास में किराए के भवन में कांग्रेस कार्यालय चलता था। बाद में इसका विवाद कोर्ट में चला और कोर्ट में कांग्रेस हार गई, तो मदन निवास खाली करना पड़ा। जब महेंद्रसिंह रलावता शहर कांग्रेस अध्यक्ष बने, तो उन्होंने अपने निजी दफ्तर से संगठन को चलाया। इसके बाद जब विजय जैन शहर अध्यक्ष और भूपेंद्रसिंह राठौड़ देहात जिला अध्यक्ष बने, तो उन्हें भी अपने निजी दफ्तरों को कांग्रेस कार्यालय बनाना पड़ा। जैन और राठौड़ अध्यक्ष पद से निवर्तमान होने के बावजूद कांग्रेस की नैया खैव रहे हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए वार्ड स्तर से लेकर मंडल, जिला और प्रदेश स्तर तक अनेक बैठकें की थीं और अब लोकसभा चुनाव के लिए भी ऐसा ही कर चुकी है, किंतु कांग्रेस यह बैठकें करने में बहुत पीछे रही है। चलिए, अब तो लोकसभा चुनाव का आगाज भी हो चुका है और दोनों दलों के रणबांकुरे भी तैयार हो गए हैं। दोनों दल, उनके उम्मीदवार और नेता-कार्यकर्ता बाजुओं का कितना दम दिखा पाते हैं, यह मैदान-ए-जंग में पता चल जाएगा।