*मतदाता मतदान से विमुख क्यों?*

-ऐसी कौनसी वजह है, जो इस बार मतदान प्रतिशत शेयर बाजार की तरह नीचे आ गया
-जो हालात इस बार मतदान प्रतिशत कम रहने के लिए बताए जा रहे हैं, वे तो पिछले लोकसभा चुनावों के वक्त भी रहे थे
-क्या महज 50-60 प्रतिशत मतदान से राजनेताओं, जनता के भाग्य विधाताओं और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का सही चयन हो सकता है

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉लोकसभा चुनाव-2024 के पहले चरण में अनेक राज्यों की लोकसभा सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान हो चुका है। इनमें राजस्थान भी है, जिसमें 25 में से 12 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं। राजस्थान में पहले चरण में मतदान मात्र 57.87 प्रतिशत रहा है, जो पिछले चुनाव यानी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से 5.84 प्रतिशत कम है। चुनाव आयोग द्वारा जिला प्रशासनों यानी जिला निर्वाचन अधिकारियों के माध्यम से मतदाता जागरूकता के ढेरों कार्यक्रम चलवाए गए, इसके बावजूद मतदाताओं का मतदान के प्रति विमुख होने का कारण समझ से परे है। जो कारण फौरी तौर पर दिखाई देता है, वह यह है कि हो सकता है, मतदाताओं का अपने-अपने क्षेत्र के मौजूदा जनप्रतिनिधियों से भरोसा खत्म होता जा रहा हो। वरना, मतदान प्रतिशत गिरने का और कोई बड़ा कारण जान नहीं पड़ता है।

प्रेम आनंदकर
बात सही भी हो सकती है। जनता के वोटों पर राज और राजनीति करने वाले, सत्ता का सुख भोगने वाले चुनाव के बाद जनता को भूल जाते हैं और बाद में जनता अपनी समस्याओं का समाधान कराने के लिए उनके आगे-पीछे घूमती रहती है, किंतु उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी जाती है। कोई कह रहे हैं कि गर्मी के कारण मतदाता वोट डालने के लिए बाहर नहीं निकले। कोई कह रहे हैं कि इन दिनों शादी-ब्याह के सावे यानी मुहूर्त चल रहे हैं और शादियों की भरमार है, जिसमें वर-वधू पक्ष के लोग व्यस्तता के चलते वोट डालने नहीं पहुंच पाए। कोई कह रहे हैं कि फसलों की कटाई और मंडी में उपज बेचने के लिए व्यस्तता के कारण किसान वोट डालने नहीं पहुंचे। जो तीन प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं, उनमें से एक भी उपयुक्त नहीं लगता है। इन दिनों ऐसी कोई भीषण गर्मी भी नहीं पड़ रही है, जिससे मतदाता वोट डालने के लिए घरों से बाहर निकल कर मतदान केंद्र तक नहीं पहुंच सकें। वैसे भी प्रत्येक मतदाता के घर से मतदान केंद्र इतने भी दूर नहीं बनाए गए हैं, जिससे वे दूर समझ तक वोट डालने नहीं जा सकें। कमोबेश अधिकांश मतदान केंद्र वॉकिंग डिस्टेंस पर बनाए गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि जो लोग इन दिनों शादी-ब्याह में व्यस्त हैं, वे आधा घंटा या पन्द्रह मिनट का समय वोट डालने के लिए नहीं निकाल सकें। जहां तक किसानों का सवाल है, यह बात सही है कि इन दिनों फसलों की कटाई, धान की सफाई और उपज मंडियों में बेचने का सिलसिला चल रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इन सबके बीच किसान वोट डालने के लिए मतदान केंद्र तक नहीं पहुंच सकें। जो हालात इस बार मतदान प्रतिशत कम रहने के लिए बताए जा रहे हैं, वे हालात तो पिछले लोकसभा चुनावों के वक्त भी रहे थे। फिर ऐसी कौनसी वजह है, जो इस बार मतदान प्रतिशत शेयर बाजार की तरह नीचे आ गया। वजह चाहे जो हो, लेकिन इस बार कम मतदान प्रतिशत ने भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की नींद जरूर उड़ा दी है। अब अगले दौर में राजस्थान की शेष 13 लोकसभा सीटों के लिए 26 अप्रैल को होने वाले मतदान में यह आंकड़ा बढ़ाने के लिए दोनों ही प्रमुख दल खासा प्रयास कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस जीरो रही थी। इस चुनाव में भाजपा की सीटें घटेंगी या कांग्रेस भी कुछ सीटें हासिल कर सकती है, यह तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता है। किंतु पहले चरण के आंकड़ों के आधार पर फिलहाल कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। दूसरा चरण पूरा होने के बाद जरूर कयास लगाए जा सकते हैं। यदि दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत गिरा तो भी और बढ़ा तो भी, दोनों स्थितियों में सियासत की नई कहानी रचने के आसार जरूर दिखाई दे जाएंगे। दूसरे चरण में भी मतदान प्रतिशत गिरता है, तो फिर इस सवाल का जवाब सभी राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को खोजने के प्रयास करने होंगे कि आखिर मतदाता मतदान करने से विमुख क्यों होता जा रहा है। सौ में से 80, 85, 90 या 95 प्रतिशत मतदान क्यों नहीं हो सकता है। क्या महज 50-60 प्रतिशत मतदान से राजनेताओं, जनता के भाग्य विधाताओं और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का सही चयन हो सकता है। क्या मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी केवल चुनाव आयोग और जिला निर्वाचन अधिकारियों की है। क्या राजनीतिक दल इसमें सहभागी नहीं बन सकते हैं।

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