भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के माध्यम से मानव जीवन के गूढ़रहस्यों सरल भाषा में समझाते हुवे निष्काम भाव से सात्विक कर्म करके उन्हें परमात्मा को समर्पित करने कहा था | कृष्ण ने केवल उपदेश ही नहीं दिए ,उन्होंने उनको साकार कर भी दिखाया | जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है वेसे ही उनका जीवन भी |
भगवान ने बताया कि रिश्ते कैसे निभाये जाते है , अपने जीवन को कैसे प्रेममय बनाया जाता है और जीवन के उतार चड़ाव कासामना मुस्कराते हुये कैसे किया जाता है l भगवानकृष्ण ने हमको समझाया कि हम क्यों व्यर्थ की चिंता करते हैं? आत्मा अविनाशी और अमर है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप ना करो, भविष्य की चिंता ना करो। ध्यानपूर्वक सुनो तुम्हारा क्या गया गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या लाये हो जो नष्ट हो गया है ? ना तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं परदिया। जो लिया, भगवान से लिया। जो दिया भगवान को दिया।
इंसान खाली हाथ आया और खाली हाथ जायगा। जो आज तुम्हारा है, कल किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का मूल कारण है।विश्वास रखों परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन हैं। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहे को जनता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।जो कुछ भी तुम करते हो उसे, भगवान को अर्पण कर दो। ऐसा करने से तुमको सदा का आनंद अनुभव होगा। |
इस जन्माष्टमी भगवान की उपासना करते हुये उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन मे उतारे | कर्तव्य परायणता की यही शिक्षा श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के माध्यम से अर्जुन को दी थी, जो युद्ध भूमी में अपने स्वजनों की संभावित म्रत्यु के भय से दुखी होकर अपने क्षत्रिय धर्म एवं कर्तव्य से मुहँ मोड़ कर युद्ध नहीं करना चाह रहें थे। भगवान ने बतलाया कि i एक क्षण में तुम करोडो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जातेहो। मेरा -तेरा, छोटा -बड़ा, अपना -पराया मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा हैं, तुम सबकेहो।यह शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसमें ही में मिलजाएगा। परन्तु आत्मा स्थिर हैं अविनाशी है तुम नाशवान शरीर नहीं हो तुम तो अविनाशी आत्मा हो तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो।
निसंदेह गोवर्धन कान्हा के सम्पूर्ण जीवन काल में कर्म की ही प्रधानता रही थी ।
भगवान कृष्ण ने हमें बताया कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को क्र असत्य, विनम्रता पर अहंकार, नैतिकता परअनैतिकता, सहिष्णुता पर असहिष्णुता, न्याय पर अन्याय औरभगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता के माध्यम से मानव जीवन के गूढ़रहस्यों सरल भाषा में समझाते हुवे निष्काम भाव से सात्विक कर्म करके उन्हेंपरमात्मा को समर्पित करने कहा था | कृष्ण ने केवल उपदेश ही नहीं दिए ,उन्होंने उनको साकार कर भी दिखाया | जैसे गीता के रूप में उनकी वाणी अनुकरणीय है वेसे ही उनका जीवन भी | भगवान ने बताया कि रिश्ते कैसे निभाये जाते है , अपने जीवन को कैसे प्रेममय बनाया जाता है और जीवन के उतार चड़ाव कासामना मुस्कराते हुये कैसे किया जाता है भगवानकृष्ण ने हमको समझाया कि हम क्यों व्यर्थ की चिंता करते हैं? आत्मा अविनाशी और अमर है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप ना करो, भविष्य की चिंता ना करो। ।ध्यानपूर्वक सुनो तुम्हारा क्या गया गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुम क्या लाये हो जो नष्ट हो गया है ? ना तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं परदिया। जो लिया, भगवान से लिया। जो दिया भगवान कोदिया। इंसान खाली हाथ आया और खाली हाथ जायगा। जो आज तुम्हारा है, कल किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का मूल कारण है।विश्वास रखों परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन हैं। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहे को जनता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।जो कुछ भी तुम करते हो उसे, भगवान को अर्पण कर दो। ऐसा करने से तुमको सदा का आनंद अनुभव होगा। |
कर्तव्य परायणता की यही शिक्षा श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता के माध्यम से अर्जुन को दी थी, जो युद्ध भूमी में अपने स्वजनों की संभावित म्रत्यु के भय से आह होकर अपने क्षत्रिय धर्म एवं कर्तव्य से मुहँ मोड़ कर युद्ध नहीं करना चाह रहें थे। एक क्षण में तुम करोडो के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जातेहो। मेरा तेरा छोटा -बड़ा, अपना -पराया मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा हैं, तुम सबकेहो।यह शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसमें ही में मिलजाएगा। परन्तु आत्मा स्थिर हैं अविनाशी है तुम नाशवान शरीर नहीं तुम तो अविनाशी आत्मा हो तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। निसंदेह गोवर्धन कान्हा के सम्पूर्ण जीवन काल में कर्म की ही प्रधानता रही थी |
याद रखें कि जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।मेरा तेरा, छोटा बड़ा, अपना पराया, मन से मिटा दो,
फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो। मनुष्य जो चाहे बन सकता है, अगर वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें तो। जो मनुष्य अपने अपने कर्तव्य का पालन करता है, वह असली योगी है।
जो पुरुष न तो कर्मफल की इच्छा करता है, और न कर्मों से घृणा करता है, वह मनुष्य ही वास्तव के अंदर संन्यासी है। जीवन न तो भविष्य में है ना अत |
जो विद्वान् होते है, वो न तो जीवन के लिए और न ही मृतक के लिए शोक करते है। हे अर्जुन! परमेश्वर प्रत्येक जीव के हृदय में स्थित है।
भगवद गीता के अनुसार नरक के तीन द्वार होते है, वासना, क्रोध और लालच। मनुष्य को इन तीनों से बचना चाहिए |
कर्म काण्ड पूजा अर्चना का अपना महत्व है | किंतु साधारण आदमी अगर कृष्णमय बन कर भगवान के उपदेशों को मूर्त रूप देने की आत्मशक्ति प्राप्त कर ले तो सच्चाई में यही भगवान की सच्ची उपासना होगे |
डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर