1.गढ़ों में गुमटियां ज्यों प्रहरियों की यारों
जलसों में दलबंदी त्यों
रहबरों की यारों
जख्मे जिगर कह रहे थे
शहर पनाह पे चिल्ला के
नजराना शय ही ऐसी है
सनद रहे यारों
2.
तारीख भी क्या कमाल करती है
चेहरे पे चेहरे लगा
औरों को
मोहरा बनाने वालों को
स्याह कोठरी से निकाल
रोशन राहों पे ला सजा देती है
तारीख भी क्या कमाल करती है
कैलेंडर के पन्नों में खुद बदल जाती
दुनिया में इतिहास बदल देती है
घंटे पहले डुबो देती सूरज
और छह घंटे बाद
फिर
सूरज उगा देती है
तारीख भी क्या कमाल करती है
चेहरे पे चेहरे लगा
औरों को मोहरा बनाने वालों को
स्याह कोठरी से निकाल
रोशन राहों पे ला सजा देती है
3.
खो गया है आदमी
भीड़ में
तनहा हो गया है आदमी
यात्रिक है मगर सोया हुआ है आदमी
यात्रा के हर पड़ाव पर
अपने आपको ढूंढ़ता है आदमी
4.
उड़ान…
आकाश असीम और खुला है
फैला पंख और भर उड़ान
गा नवगीत और स्थापित कर नव आयाम
वाऽह ! क्या बात है !
ज़बरदस्त !
आधुनिक भाव बोध की अच्छी कविताएं हैं
मोहन थानवी जी की लेखनी अपनी मिसाल आप है …
आभार !
शुभकामनाओं सहित…