क्यूँ कोई कलाकार देशसेवा का मार्ग नहीं चुनता?

नरेश मधुकर
नरेश मधुकर

ज़रा सोचिये …
मैं कई बार सोचता हूँ कि क्यूँ कोई कलाकार कोई चित्रकार ,गायक ,कवी ,मूर्तिकार कभी देशसेवा का मार्ग नहीं चुनता शायद इसलिए …
क्यूंकि ये सारे लोग दिल से सोचने वाले होते हैं और देश सेवा के ‘राजनीति’ नामक माध्यम में दिल से सोचने वाले नहीं समा पाते
क्यूंकि इस माध्यम में चालाकी ,क्रूरता और एक दूसरे को हारने कि प्रवर्ती बहुत हावी हैं इस वजह से अक्सर कलाकार राजनीति में आकर भी नहीं टिक पाते …
यह दर्शाता हैं कि देश सेवा का ‘राजनीति’ नामक माध्यम आज के युग में अच्छे और निर्मल मन वालों क लिए नहीं रह गया है …
कुछ दशक पूर्व ऐसा नहीं था लेकिन अब यहाँ वही टिकता हैं जो छल कपट और चाटुकारिता से काम ले जो नहीं करता ये सब वो लकीर से बहार खडा दिखाई देता है
ये बड़ी चिंता का विषय है …. आम आदमी कि सोच राजनेताओं के प्रति बड़ी खराब हो चुकी है
और राजनेताओं ने भी अब इसे देश सेवा का नहीं स्वयं सेवा का माध्यम बना लिया है
अक्सर ऐसे नेता मिल जायेंगे जी समाजसेवक वर्ग को जो कि अपनी अपनी संस्था के माध्यम से लोकहित करते हुए दिखाई देते है …. चोर कहते हुए नहीं डरते
जबकि यदि इस देश कि नीव यदि कोई चला रहा है तो वही लोग जो राजनीति से दूर अपने अपने स्तर पे समाज सेवी संस्थाएं चला रहे है … वो यदि भ्रष्टाचार करते भी है तो उनकी एक सीमा है … जो कि आम आदमी को नुक्सान नहीं पहुंचाती
थोडा ही सही लेकिन फायदा ज़रूर पहुंचाती हैं
ऐसे में कला से जुड़े लोग यदि थोड़ी सक्रियता दिखाए और इन समाज कल्याण में जुटी संस्थाओं से मिल कर देश हित में काम करे तो ये राजनीतिक जमात अल्पमत में आ सकती हैं और निश्चित तौर पे असल लोकतंत्र का निर्माण हो सकता है
युवा वर्ग को ये समझना होगा कि ये देश केवल राजनेता नहीं चला रहा है बल्कि सोशल सर्विस और कला के माध्यम से अपनी बात पहुंचाने वाली एक जुनूनी जमात भी इस देश में विकसित हो चुकी है जिसका युवाओं को सम्मान करना चाहिए
कलाकार को ये समझना होगा कि राजनीतिक पार्टियों को ही केवल ठेका ना दे देश का भला सोचने का बल्कि खुद भी अपनी कला के माध्यम से अलख जगाये रखे और वक्त पड़ने पर जब भगवान कृष्ण महाभारत में प्रतिज्ञाबद्ध होते हुए भी अनर्थ देख कर रथ का पहिया हाथ में उठा सकते है तो कलाकारों का भी फ़र्ज़ बनता हैं कि जिस माटी में पैदा हुए हैं उसकी रक्षा हेतु उठ खड़े हों
और निश्चित तौर पे राजनेताओं को भी ये सोचना ही होगा कि उन पे ज़िम्मेदारी है लोगो का लोकतंत्र में विश्वास कायम रखने कि नहीं तो वो दिन दूर नहीं है कि ये कलाकारों और युवाओं कि मिलीजुली जमात उन्हें संसद से उठा कर बहार फेंक देगी
जय श्री कृष्ण
-नरेश मधुकर

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