भुखमरी को बनाया समुदाय का सवाल

ग्रेन बैंक कमेटी सदस्य (दाएं से बाएं) रामस्वरूप सहरिया, जानकी बाई व हेमराज
ग्रेन बैंक कमेटी सदस्य (दाएं से बाएं) रामस्वरूप सहरिया, जानकी बाई व हेमराज

 

ग्रेन बैंक के सामने बैठे सूंडावासी
ग्रेन बैंक के सामने बैठे सूंडावासी

-बाबूलाल नागा- सदियों से भूख एवं गरीबी के कुचक्र में फंसे बारां जिले के सहरिया आदिवासी परिवारों ने भुखमरी को समुदाय का सवाल बना लिया है। अब वे पूरे सालभर के लिए न केवल अपने परिवारों बल्कि गांव व समुदाय के लिए भी अनाज एकत्रित कर रहे हैं। इसके लिए सहरियाओं ने ‘अनाज बैंक’ (ग्रेन बैंक) का निर्माण किया है। जिले के किशनगंज तहसील के सूंडा गांव में हो रहे इस अभिनव प्रयास से एक उम्मीद जगी है।
दरअसल, पिछले वर्ष किशनगंज तहसील के सूंडा, लक्ष्मीपुरा, अमरोली, खेरला, ढबका व गणेशपुरा के 135 परिवार बंधुआ मजदूरी से मुक्त हुए थे। तब इन परिवारों के सामने भरण पोषण का गंभीर संकट आ खड़ा हुआ। ऐसे में भुखमरी और आपात स्थितियों से निपटने के लिए सूंडा गांव के 40 सहरिया परिवारों ने भुखमरी से लड़ने का बीड़ा उठाया। उन्होंने एक अनाज बैंक बनाने का निर्णय लिया। तय किया कि प्रत्येक परिवार प्रतिमाह एक एक किलो अनाज एकत्रित कर इस अनाज बैंक में जमा करवाएगा। अनाज को रखने के लिए दो कमरे बनाए गए। जिन्हें ‘ग्रेन बैंक’ नाम दिया गया। इन कमरों की साइज 19ग्9 व 10ग्9 है। ग्रेन बैंक के निर्माण कार्य में सहरियाओं ने ही मिलकर श्रमदान किया। इन लोगों ने ही श्रमदान करके रेत व पत्थर जुटाए। श्रमदान कर नींव खोदी। ग्रेन बैंक के निर्माण में आवश्यक अन्य सामग्री के लिए जाग्रत महिला संगठन द्वारा खर्च किया गया। लगभग तीन माह में यह ग्रेन बैंक बनकर तैयार हुआ। मार्च 2011 में सुचारू रूप से इस ग्रेन बैंक ने काम करना शुरू किया। एक प्रबंध समिति का गठन किया गया। ग्रेन बैंक के अध्यक्ष हेमराज सहरिया, कोषाध्यक्ष रामस्वरूप सहरिया व सचिव जानकी बाई को बनाया गया। हर माह की 30 तारीख को कमेटी की मासिक बैठक होती है। बैठक में पूरे गांव के लोगों की भागीदारी रहती है।
ग्रेन बैंक के अध्यक्ष हेमराज सहरिया ने बताया कि शुरुआत में प्रति परिवार एक एक किलो अनाज एकत्रित किया जाता था। सहरियाओं को राज्य सरकार की ओर से 35 किलो गेहूं निः शुल्क वितरित किया जाता है। उसी गेहूं में से अब प्रति परिवार 5 किलो गेहूं ग्रेन बैंक में जमा करवाते हैं। गांव के लोग आवश्यकतानुसार ग्रेन बैंक से अनाज उधार ले लेते हैं। जितना गेहूं लिया जाएगा बदले में एक किलो गेहूं बढ़ाकर जमा करवाना होता है। दस किलो गेहूं पर ग्यारह किलो गेहूं जमा करवाते हैं। अनाज वापस जमा करवाने का कोई निश्चित समय नहीं है। लाभार्थी परिवार अपनी सुविधानुसार अनाज जमा करवा सकता है। किसी परिवार में शादी या समारोह होने पर ग्रेन बैंक से इकट्ठा अनाज उधार ले लेते हैं। अब तक करीब 8 से 10 क्विंटल अनाज ग्रेन बैंक में जमा किया जा चुका है। वर्तमान में ग्रेन बैंक में 2 क्विंटल 80 किलो गेहूं रखा हुआ है। करीब दस परिवारों ने 30 से 40 किलो गेहूं उधार ले रखा है।

सूंडा गांव की इस पहल का सहरिया समुदाय में असर देखने को मिल रहा है। जरूरत के वक्त उन्हें अनाज मिल जाता है। साथ ही अन्य गांवों के सहरिया भी इस पहल को आगे बढ़ा रहे हैं। इकलेरा डांडा के 30 सहरिया परिवारों ने भी ऐसा ही एक ग्रेन बैंक बनाने का निर्णय लिया है। ये परिवार भी बंधुआ मजदूरी के कुचक्र से बाहर निकले हैं। वर्तमान में इन्हें भूख से लड़़ना पड़ रहा है। इनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना मुश्किल हो रहा है। इकलेरा डांडा का ग्रेन बैंक अभी निर्माणाधीन है।
बहरहाल, खाद्य सुरक्षा के लिए सहरियाओं ने अपने स्तर पर बेहतर उपाय कर लिया है। आदिवासी इलाकों के लोगों को भुखमरी का शिकार न होना पड़े। वे कुपोषण की जकड़ में भी न आएं। इसी मकसद से बनाया गया है ‘ग्रेन बैंक।’ जहां एक ओर तो सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात को नकारने में लगा रही है कि बारां जिले में भूख और कुपोषण के हालात अब नहीं है। वहीं सूंडा गांव में ग्रामीण जन चुपचाप कुपोषण और भूख को समुदाय का सवाल बनाकर अब सरकार की जवाबदेहिता तय करने मंे लगे हैं। सवाल यह है कि सूंडा का यह गुपचुप प्रयास सरकार कब देखेगी और पूरे प्रदेश में इसको अपनाने की प्रक्रिया चलाएगी।
कहां गई अनाज बैंक योजना?
‘‘अनाज बैंक’’ जैसी अभिनव योजनाओं को अमलीजामा पहनाने से पहले ही खामोश बस्ते में डाल दिया गया। आदिवासी इलाकों में भुखमरी और कुपोषण जैसी भयावह समस्याओं से कारगर तरीके से निपटने के लिए बनाई गई थी ‘‘अनाज बैंक योजना।’’ सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक 1996-1997 से इस योजना को अस्तित्व में आना था लेकिन इस योजना को ढूंढते ही रह जाएंगे। कम से कम राजस्थान में तो इस योजना का अता पता नहीं है। अनाज बैंक योजना का मकसद था दूर दराज के ग्रामीण इलाकों और खासतौर से आदिवासी इलाकों में रहने वाले गरीब आदिवासियों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराना। ताकि भुखमरी और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने के साथ ही संक्रामक तरीके की बीमारियों से भी निपटा जा सके।

बाबूलाल नागा
बाबूलाल नागा

शुरुआती योजना के तहत ‘‘अनाज बैंक योजना’’ को देश के 13 राज्यों में स्थित ऐसे गांवों में लागू किया जाना तय हुआ जिनकी 50 फीसदी आबादी आदिवासी है। ये राज्य थे आंध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात, केरल, मध्यप्रदेश, मणिपुर, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व महाराष्ट्र। जिन गांवों में यह योजना लागू की जानी थी उनकी पहचान संबंधित राज्यों को आदिवासी आबादी के घनत्व और उनके हालात को मद्देनजर रखते हुए करनी थी। योजना के मुताबिक योजना के लिए चुनिंदा गांवों में ‘‘अनाज बैंक योजना’’ स्थापित किए जाने थे। तय किया गया था कि इन बैंकों के लिए एकमुश्त अनुदान के रूप में भारत सरकार बैंक के सदस्य बने प्रत्येक परिवार के हिसाब से एक क्विंटल अनाज मुहैया कराएगी और इस बैंक का संचालन एक प्रबंध समिति के हाथों होगा। तयशुदा मापदंडों के मुताबिक इन अनाज बैंकों के सदस्य 25 किलोग्राम के हिसाब से 4 किश्तों में अनाज उधार ले सकते थे और बाद में फसल के वक्त उन्हें इस उधार को नाममात्र के ब्याज के साथ वापस करना होता था। (यह रिपोर्ट इंक्लूसिव मीडिया फैलोशिप के अध्ययन का हिस्सा है)

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