दक्षिण एशिया: मिलजुल कर हल हो सकता है बिजली संकट

दक्षिण एशिया में ऊर्जा की विशाल क्षमता होने बात कही जाती है, लेकिन इस क्षेत्र के देशों में लोग बिजली की भारी कटौतियों का सामना कर रहे हैं.

ताज़ा उदाहरण भारत का है जहां पावरग्रिड फेल हो जाने की वजह से कई राज्यों में घंटों बिजली गुल हो गई थी.

विशेषज्ञों का कहना है कि ऊर्जा तंत्र में इतनी भारी गड़बड़ी का मूल कारण बिजली की आपूर्ति में कमी है.

हालांकि राष्ट्रीय ग्रिड का खराब प्रबंधन और बिजली की चोरी जैसे दूसरे कारणों को भी जिम्मेदार माना जाता है.

विशेषज्ञों की राय में दक्षिण एशियाई देश बिजली की मांग और आपूर्ति के अंतर को अपने विशाल ऊर्जा संसाधनों और दूसरे देशों के साथ बिजली का लेन-देन कर काफी हद तक कम कर सकते हैं, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ नहीं किया गया है.

सीमा पार ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अमरीकी सहायता से चलनेवाले दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय पहल के क्षेत्रीय निदेशक एस पद्मनाभन कहते हैं, “दक्षिण एशिया दुनिया के कई क्षेत्रों के मुकाबले ऊर्जा व्यापार और क्षेत्रीय सहयोग के मामलों में काफी पीछे है.”

संसाधन

दक्षिण एशिया पनबिजली, सौर और कोयला और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के मामले में धनी है.

एस पद्मनाभन कहते हैं, “ऊर्जा संसाधनों की विविधता को देखते हुए मांग और पूर्ति के अंतर को दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग से काफी कम किया जा सकता है.”

नेपाल, भूटान, भारत और पाकिस्तान में पनबिजली की भारी क्षमता है जबकि बांग्लादेश में गैस का बड़ा भंडार है.

भारत का कोयला भंडार देश की अर्थव्यवस्था के विकास का मुख्य वाहक रहा है जबकि पाकिस्तान में कोयले का खनन होना बाकी है.

पाकिस्तान के कुछ तटीय इलाकों में पवन ऊर्जा संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई है.

ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी ऊर्जा संसाधनों को अगर आपस में जुड़े ग्रिड से जोड़ दिया जाए तो दक्षिण एशिया की ऊर्जा ज़रूरतें बहुत हद तक पूरी हो सकती हैं.

बिजली की कमी

भारत में 170,000 मेगावॉट से ज्यादा बिजली की उत्पादन क्षमता है और बिजली की वार्षिक मांग चार फीसदी की दर से बढ़ रही है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक व्यस्त घंटों में बिजली की 10 फीसदी की कमी रहती है.

भारत की संशोधित पंचवर्षीय योजना में 60,000 मेगावॉट बिजली पैदा करने का लक्ष्य है.

पाकिस्तान का बिजली संकट और गहराता जा रहा है.

एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक उसे 50,000 मेगावॉट बिजली की जरूरत होगी जो कि मौजूदा उत्पादन क्षमता का तीन गुना है.

जल संसाधन संपन्न देश नेपाल में गर्मियों में 20 घंटों तक बिजली की कटौती होती है जब बर्फ आधारित नदियां लगभग सूख जाती हैं.

बांग्लादेश की सरकार का कहना है कि 2013 तक 7,000 मेगावॉट बिजली उत्पादन के लक्ष्य को पहले ही हासिल कर लिया गया है जबकि देश की 50 फीसदी आबादी को अभी भी बिजली उपलब्ध नहीं है.

क्षमता

भारत के पूर्व ऊर्जा सचिव आर बी शाही कहते हैं, “दक्षिण एशिया में बिजली उत्पादन की जो क्षमता है उसे देखते हुए हालत इतनी खराब नहीं होनी चाहिए थी. नेपाल के पास 200,000 मेगावॉट पनबिजली पैदा करने की क्षमता है, भारत के पास 150,000 मेगावॉट की क्षमता है जबकि भूटान और बर्मा के पास 30,000 मेगावॉट पनबिजली उत्पादन की क्षमता है.”

विशेषज्ञों की राय में जल विद्युत क्षमताओं के अलावा दक्षिण एशिया में पर्याप्त सौर और पवन ऊर्जा क्षमता है, खासतौर से भारत में जिससे कोयले और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता क्रमश: कम की जा सकती है.

उनका ये भी कहना है कि विभिन्न देशों के बीच ऊर्जा सहयोग की रफ्तार भूराजनैतिक और संरचनात्मक कमियों की वजह से धीमी रही है क्योंकि देशों के बीच बिजली की लाइनों की भी कमी है.

भारत के ऊर्जा राज्य मंत्री के सी वेणुगोपाल ने पिछले वर्ष एक ऊर्जा सम्मेलन में कहा था कि,”ऊर्जा का सीमा पार व्यापार एक जटिल मुद्दा है क्योंकि इसमें बाज़ार, तकनीक और सबसे महत्वपूर्ण भूराजनैतिक मुद्दे शामिल होते हैं.”

पनबिजली का विकास जल संसाधन पर आधारित है और दक्षिण एशिया में ये राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति के लिए संवेदनशील विषय रहा है.

जल संसाधन को लेकर पड़ोसी देश एक-दूसरे को संदेह की निगाह से देखते हैं.

इसका सबसे अच्छा उदाहरण नेपाल और भारत हैं.

हालांकि कई देश आपस में सहयोग कर भी रहे हैं.

विशेषज्ञ भारत को भूटान द्वारा जलविद्युत दिए जाने की ओर संकेत करते हैं जिससे भारत के राष्ट्रीय ग्रिड को काफी बिजली मिलती है.

सहयोग

भूटान ने 11,000 मेगावॉट क्षमता की नई जलविद्युत परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया है और कहा जा रहा है कि ये भारतीय बाज़ार को ध्यान में रखकर किया जा रहा है.

शाही कहते हैं कि भारत और बांग्लादेश के बीच 500 मेगावॉट की ट्रांसमिशन लाइन इस साल तक तैयार हो जाएगी जिससे भारत सरकार बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति करेगी.

भारत और नेपाल भी इसी तरह की ट्रांसमिशन लाइन विकसित किए जाने पर काम कर रहे हैं.

और भारत और पाकिस्तान के बीच भी ग्रिड कनेक्टिविटी को लेकर बातचीत चल रही है.

लेकिन विभिन्न देशों के बीच ऊर्जा सहयोग को लेकर चल रही बातचीत काफी धीमी है और ऐसा लगता है कि दक्षिणी एशियाई क्षेत्र का बिजली संकट अभी और गहराने वाला है.

नेपाल विद्युत प्राधिकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि,”बिजली संकट का खतरा तब तक नहीं टलेगा जबतक क्षेत्र की सरकारें आपस में सहयोग नहीं करतीं.”

 

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