‘क्यूरियोसिटी’ की लैंडिंग में वैज्ञानिक घोष का अहम रोल

अंतरिक्ष को खंगालने में जुटे वैज्ञानिकों के लिए सोमवार का दिन ऐतिहासिक रहा। अंतरिक्ष यान ‘क्यूरियोसिटी’ को सफलतापूर्वक मंगल पर उतराने वाली नासा की टीम में भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ घोष का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।

सफलता से खुश घोष ने बताया कि यह क्षण हजारों लोगों के पांच-छह साल की मेहनत के बाद आया है। अगर यह यान क्रैश हो जाता तो फिर उसके बाद कुछ नहीं बचता। हमें इस क्रेटर में परतों जैसी संरचना भी दिखी। क्यूरियोसिटी रोवर के सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की सतह पर उतरने को असाधारण और अदभुत उपलब्धि करार देते हुए भारतीय अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने भी इसकी सराहना की है।

अब लाल ग्रह के कई अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठने की उम्मीद है। दो साल के अपने अभियान के दौरान क्यूरियोसिटी रोवर पता लगाने में मदद करेगा कि क्या मंगल पर कभी जीवन था और क्या वहां भविष्य में जीवन की कोई संभावना है।

भारतीय समयानुसार सुबह 11.00 बजे रोवर ने लाल ग्रह की ऊबड़ खाबड़ सतह को छुआ। उतरने के कुछ क्षण बाद ही क्यूरियोसिटी ने कई तस्वीरें भी पृथ्वी पर भेज दीं। 2.5 अरब डॉलर की लागत से तैयार हुआ क्यूरियोसिटी गेल क्रेटर में एक पहाड़ की तलहटी में उतरा। इस पहाड़ की ऊंचाई करीब पांच किलोमीटर और व्यास 154 किमी है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के इंजीनियर ऐलन चेन ने अमेरिका के इस सबसे उन्नत और सबसे विशाल रोवर के सुरक्षित उतरने का ऐलान किया। यह रोवर कार के आकार का और एक टन वजनी है। मंगल के हल्के वातावरण में नीचे उतरने के दौरान के 7 मिनट क्यूरियोसिटी के लिए बेहद खतरनाक माने जा रहे थे।

रोवर की सफल लैंडिंग के साथ ही क्यूरोसिटी मिशन का संचालन करने वाली नासा की जेट प्रपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) के वैज्ञानिक खुशी से उछल पड़े। कई वैज्ञानिकों की आंखों में खुशी के आंसू भी छलक पड़े। नासा एडमिनिस्ट्रेटर चार्ल्स बोल्डेन ने कहा कि क्यूरोसिटी अब मंगल पर जीवन को लेकर हमारे सवालों का जवाब खोजेगा।

माना जा रहा है कि मंगल को समझने, वहां जीवन खासतौर पर सूक्ष्म जीवों की तलाश की दिशा में क्यूरोसिटी की खोज एक क्रांतिकारी कदम होगी। इस रोवर से अंतरिक्ष में और अहम मिशनों का रास्ता भी खुल गया है। मंगल से चट्टान या मिट्टी के अंश पृथ्वी पर लाने और बाद में कभी मानव को अंतरिक्ष पर भेजने की पहल भी हो सकती है। क्यूरियोसिटी ने पृथ्वी से मंगल ग्रह तक की 56.7 करोड़ किलोमीटर तक की दूरी आठ महीनों से कुछ अधिक समय में पूरी की है। इसे पिछले साल नवंबर में छोड़ा गया था।

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