तिवाड़ी को हाशिये पर चले जाने का मलाल

ghanshyam tiwariराजस्थान भाजपा में लंबे समय चल रही खींचतान को भले ही श्रीमती वसुंधरा राजे को प्रदेश अध्यक्ष व गुलाब चंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष बना कर समाप्त मान लिया गया हो, मगर भाजपा के दिग्गज नेता घनश्याम तिवाड़ी अब भी नाराज हैं। उन्हें मनाने की लाख कोशिश की गई, उनकी नाराजगी अब भी खत्म नहीं हो पा रही। प्रदेश भाजपा में नए तालमेल के प्रति उनकी असहमति तभी पता लग गई थी, जबकि दिल्ली में सुलह वाले दिन वे तुरंत वहां से निजी काम के लिए चले गए। इसके बाद वसुंधरा के राजस्थान आगमन पर स्वागत करने भी नहीं गए। श्रीमती वसुंधरा के पद भार संभालने वाले दिन सहित कटारिया के नेता प्रतिपक्ष चुने जाने पर मौजूद तो रहे, मगर कटे-कटे से। कटारिया के स्वागत समारोह में उन्हें बार-बार मंच पर बुलाया गया लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिले और हाथ का इशारा कर इनकार कर दिया। बताते हैं कि इससे पहले तिवाड़ी बैठक में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन कटारिया और भूपेंद्र यादव उन्हें घर मनाने गए। इसके बाद ही तिवाड़ी यहां आने के लिए राजी हुए। उन्होंने दुबारा उप नेता बनने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। उनके मन में पीड़ा कितनी गहरी है, इसका अंदाजा इसी बयान से लगा जा सकता है कि मैं ब्राह्मण के घर जन्मा हूं। ब्राह्मण का तो मास बेस हो ही नहीं सकता। मैं राजनीति में जरूर हूं, लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना अपनी शान के खिलाफ समझता हूं। मैं उपनेता का पद स्वीकार नहीं करूंगा।
कानाफूसी है कि तिवाड़ी को अपने हाशिये पल चले जाने का मलाल है। अफसोसनाक बात ये है कि वर्षों तक पार्टी की सेवा करने के बाद आज इस मुकाम पर वे अकेले पड़ गए हैं। अन्य सभी वसुंधरा या कटारिया की छत्रछाया में अपना मुकाम बना रहे हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर खुद ही खुद को अकेला जाहिर करेंगे तो खंडहर हो जाएंगे।
-तेजवानी गिरधर

error: Content is protected !!