सरकार ने कहा ट्विटर पर रोक नहीं

सूत्र के मुताबिक सरकार ने ट्विटर से ऐसा नहीं कहा है कि अगर उन्होंने सरकार की बात नहीं मानी तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

सूत्र ने बीबीसी को बताया, “वेबसाइटों को कहा गया है कि वो कुछ सामग्री को हटाएँ, और उन्होंने ऐसा करना भी शुरू कर दिया है. ये तकनीकी विषय हैं और चीजों को निपटाने में थोड़ा समय लगता है.”

सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर कथित रोक से जुड़ी रिपोर्टों को जरूरत से ज्यादा उछाला जा रहा है और इस बारे में सरकार लगातार बैठकें कर रही है.

गौरतलब है कि असम में दो समुदाय के बीच झड़पों की घटनाओं की गूंज सोशल मीडिया पर भी दिखाई दी थीं जो आगे चलकर मुंबई में एक प्रदर्शन में तबदील हो गईं.

इंटरनेट और सोशल मीडिया वेबसाइटों पर आपत्तिजनक तस्वीरें आईं जिसके बाद बंगलौर में पूर्वोत्तर के लोगों को धमकी भरे एसएमएस आए और हज़ारों की संख्या में पूर्वोत्तर के लोगों ने बंगलौर और कई अन्य शहरों से पलायन किया.

कई लोगों ने इसके लिए सोशल मीडिया वेबसाइटों खासकर फेसबुक और ट्विटर को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था.

रिपोर्टें आई थीं कि गूगल और फेसबुक तो सरकार के साथ सहयोग कर रही हैं लेकिन ट्विटर नहीं. इसके बाद ऐसी रिपोर्टें आईं कि सरकार ट्विटर पर प्रतिबंध लगा सकती है.

उधर बैंगलोर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर इंडियन सोसाइटी ने दावा किया है कि उसके पास वो सरकारी सूची मौजूद है जिसमें उन 309 वेबसाइटों और वेबपेजों के नाम हैं जिन पर रोक लगाई गई है.

इस सूची के मुताबिक जिन चार वेबसाइटों को पूरी तरह बंद किया गया है, उन संगठनों के नाम हैं हिंदूजागृति, जाफरिया न्यूज, द युनिटी डॉट ओआरजी, अतजेह सायबर डॉट नेट.

इसके अलावा कई समाचार वेबसाइटों जैसे अल जज़ीरा, फर्स्ट पोस्ट, एबीसी डॉट नेट डॉट एयू, भास्कर के कुछ पन्नों को भी ब्लॉक किया गया है.

इसके अलावा जिन वेबसाइटों के पन्नों को ब्लॉक किया गया है उनमें फेसबुक, ब्लॉगस्पाट, इरावडी डॉट ओआरजी, इस्लामाबाद टाइम्स ऑनलाइन, डिफेंस डॉट पीके, गूगल प्लस शामिल हैं.

पत्रकारों के ट्विटर अकाउंट बंद?

खबरों के मुताबिक दो पत्रकारों कंचन गुप्ता और शिव अरूर के ट्विटर अकाउंट को भी ब्लॉक कर दिया गया है हालाँकि शिव ने बीबीसी को बताया कि वो अभी भी ट्वीट कर पा रहे हैं.

सेंटर फॉर इंडियन सोसाइटी के प्रणेश प्रकाश कहते हैं कि सरकार ने उन वेब पन्नों पर रोक लगाई है जिन पर आपत्तिजनक तस्वीरों और वीडियो हैं और इस सूची में हिंदू और इस्लामिक दक्षिणवादी संगठनों और एक ईसाई दक्षिणवादी संगठन की वेबसाइट शामिल हैं.

प्रणेश कहते हैं, “मुझे लगता है कि ज्यादातर सामग्रियों को वेबसाइटों से हटाया जाना चाहिए लेकिन मुझे नहीं लगता कि सरकार को इंटनेट सर्विस प्रोवाइडरों से कहना चाहिए था कि वो वेबपन्नों पर रोक लगाएँ.”

प्रणेश ने ये नहीं बताया कि ये सूची उन्हें कहाँ से मिली है.

उनका कहना है कि सरकार को लोगों तक जानकारी पहुँचाने के लिए एसएमएस का सहारा लेना चाहिए था, ना कि उन पर भी रोक लगानी चाहिए थी.

प्रणेश कहते हैं कि कई ऐसे लोगों के भी पोस्ट पर रोक लगा दी गई है जो अफवाहों पर रोक लगाने का काम कर रहे थे और इससे सरकार की कोशिशों को ही चोट पहुँचती है.

प्रणेश की माने तो इंटरनेट के जमाने में वेब पेजों पर रोक लगाने के कदम बेकार हैं क्योंकि ऐसे कई तरीके मौजूद हैं जिनकी मदद से सेंसरशिप से बचा जा सकता है.

प्रणेश ने बताया, “कई ऐसी सामग्री को रोकने की बात की गई है जो मौजूद ही नहीं है. जिस तरह से यूट्यूब के बीडियो पर रोक लगाई गई है, वो भी सवालों के घेरे में है.”

कई लोगों ने इस पर भी सवाल उठाए हैं कि सरकार ने ब्लॉक किए गए वेबपेजों पर इतनी गोपनीयता क्यों बरती है और उनके नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किए.

उधर पत्रकार कंचन गुप्ता ने सरकार के कदम की निंदा की और कहा कि वो कथित सरकारी भ्रष्टाचार और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कड़े विरोधी रहे हैं इसलिए सरकार ने ये कदम उठाया है.

 

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