यज्ञ में मंथन से प्रकट हुये अग्नि देवता,जयकारों से गूंजा परिसर

उपशक्ति पीठ माता वनखण्डन बांसाकलां में चल रहा आयोजन
श्रीश्री 1008 शतचण्डी महायज्ञ में भक्तों की उमड रही भीड

DSC_0103DSC_0106दमोह/ वेद मंत्रों के लगातार वाचन एवं वैदिक रीति से किये गये मंथन से अग्रि देवता प्रकट हुये तथा महायज्ञ प्रारंभ हुआ। भक्त जहां जयकारे लगा रहे थे तो विप्र मंत्रों का अविरल वाचन कर रहे थे जी हां एैसा ही कुछ दृश्य था जिले के बांसा कलां ग्राम समीप वनखंडी देवी उप शक्ति पीठ का। ज्ञात हो कि विश्व शांति,मानव उत्थान,राष्ट्र की प्रगति जैसे पवित्र उद्ेश्य को लेकर नौ कुण्डीय श्रीश्री 1008 शतचण्डी महायज्ञ का आयोजन किया गया है। जिसमें यज्ञ हवन के साथ ही श्रीमद् देवी भागवत् महापुराण की कथा के साथ शिवलिंग निर्माण का कार्य भी जारी है। जिले के ही पथरिया नगर के समीप ही स्थित ग्राम बांसा कलां में चल रहे उक्त धार्मिक आयोजन के दौरान लगातार बडी संख्या में भक्तों का आना जाना लगा हुआ है। यज्ञ संचालक एवं प्रवचनकर्ता श्रीश्री 1008 महन्त स्वामी अमृत दास जी महाराज ने बतलाया कि उक्त आयोजन के संरक्षक हनुमान जी महाराज एवं प्रमुख मार्गदर्शक एवं प्रेरणा स्त्रोत बाबा देवी दास है जो बनखण्डन माता के पूजनार्चन में अपना सर्वस्व न्यौछावर किये हैं। इन्होने बतलाया कि वेदपाठी विप्र उक्त यज्ञ को सम्पन्न करा रहे हैं जो सभी जिले के बाहर से आये हुये हैं। 23 यज्ञमान सपत्नि पूर्ण वैदिक रीति रिवाज से उक्त धार्मिक आयोजन में सम्मिलित हो धर्म लाभ ले रहे हैं। अमृत दास जी ने बतलाया कि माता सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ बने,इनकी संख्या 51 है। मध्यप्रदेश मैहर में जिव्हा गिरी,उज्जैन में कमर,कालिंजर में दाहिना स्तन,चित्रकूट में दाहिने पैर उंगलियां,दंतेवाडा में दांत गिरे। इन्होने बतलाया कि जिस प्रकार उज्जैन की मां हरसिद्धि का उप शक्ति पीठ है तो उसी प्रकार चित्रकूट की बनखण्डन देवी का बांसा कलां में उप शक्तिपीठ है। अमृतदास जी ने बतलाया कि आदिवासीयों बनखण्डन देवी की पूजन प्रारंभ की एवं वह कबिलों में यहां से वहां विचरते रहते थे। लगभग 600 बर्ष पूर्व यह यहां आये जिसको द्रविड देश कहा जाता था। इन्होने बतलाया कि सम्पूर्ण दमोह एवं सागर का आधा भाग द्रविड देश कहलाता था। यहां इसी जगह आदिवासियों ने अपनी देवी वनखण्डन की स्थापना की जिससे यह उप शक्ति पीठ बना। इन्होने बतलाया कि श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार यह रमणकदीप भी कहा गया है। जहां का राजा कालिया नाग था,जिसको भगवान श्रीकृष्ण ने वंृदावन से रमणकदीप भेज दिया था। आज भी लांझी इमलिया में इसके प्रमाण मौजूद हैं। अमृतदास जी ने बतलाया कि रूकमणी देवी का हरण भी यहीं कुंडलपुर में हुआ था जिसका वर्णन धार्मिक ग्रन्थों में प्रमाणसहित दिया गया है। हमारा जिला गौरवशाली इतिहास,धर्म,संस्कृति से भरा पडा है जिसको लेकर हमें अपने आप पर गौरव करना चाहिये। इन्होने समस्त जिले वासियों से आव्हान किया कि वह कार्यक्रम स्थल पर आयें और माता वनखण्डन का आर्शीवाद ग्रहण करें।
Dr.Laxmi Narayan Vaishnava

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