राजधानी में सुरक्षित नहीं हैं महिलाएं

महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने एवं उनके प्रति अपराध कम होने का दावा भले ही दिल्ली पुलिस या सरकार कर रही है, मगर हकीकत इससे कोसों दूर है। राजधानी में महिलाएं न अपने घर में सुरक्षित हैं और न ही बाहर। घर में जहा महिलाओं को घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना एवं मारपीट का शिकार होना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर घर के बाहर महिलाएं छेड़छाड़ व दुष्कर्म जैसी वारदात का शिकार बनती हैं। यही कारण है कि राजधानी में दुष्कर्म, छेड़छाड़ व घरेलू हिंसा अधिनियम की घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है।

दिल्ली महिला आयोग के अनुसार राजधानी धीरे-धीरे महिलाओं के लिए असुरक्षित स्थान बनती जा रही है। सितंबर व अक्टूबर में ही महिलाओं को पति द्वारा प्रताड़ित किए जाने की 69 शिकायतें प्राप्त हुई। राजधानी की विभिन्न जिला अदालतों में 10 हजार से अधिक दुष्कर्म के मामले चल रहे हैं। इनमें 8799 मामले पुराने हैं। शेष 1233 दुष्कर्म के मामले पिछले एक साल में दर्ज किए गए हैं। पिछले दो महीने के दौरान महिला आयोग को करीब 58 ऐसी शिकायतें मिलीं, जिनमें महिलाओं के साथ सार्वजनिक तौर पर छेड़छाड़ एवं अभद्र व्यवहार किया गया था।

दिल्ली महिला आयोग की सदस्या जूही खान कहती हैं कि आज हम भले ही आधुनिकता के मामले में काफी आगे बढ़ गए हों, मगर महिलाओं के प्रति लोगों का नजरिया अभी भी पुराना है। यही कारण है कि महिलाएं आज भी घर में और बाहर कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती। वक्त है सोच बदलने का। हम महिलाओं के प्रति अपनी सोच में बदलाव करें तो घरेलू हिंसा एवं अन्य घटनाओं में आसानी से कमी लाई जा सकती है।

तुरंत कार्रवाई से रुक सकती हैं घटनाएं

अधिवक्ता डीडी पाडेय का कहना है कि अक्सर पुलिस छेड़छाड़ एवं महिला उत्पीड़न के मामलों में केस ही दर्ज नहीं करती है। कोई महिला थाना आती भी है तो उसे केस के संबंध में कई तकनीकी बातों में उलझा कर डरा दिया जाता है और महिला बिना शिकायत किए लौट जाती है। जरूरी है कि पीड़ित महिला की शिकायत पर तुरंत केस दर्ज हो और अदालतों में मामलों का स्पीडी ट्रायल हो।

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