कोलकाता में याद किये गये डा. टेसिटोरी

– एशियाटिक सोसायटी व राजस्थानी प्रचारिणी सभा द्बारा संयुक्त रूप से आयोजित हुआ सेमिनार 
– भाषाविद् ही नहीं, पुरातत्वविद् भी थे टेसिटोरी

कोलकाता। जैन ग्रंथों समेत प्राकृत, अपभ्रंश और राजस्थानी भाषा के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण कार्य किया एल.पी. टेसिटोरी ने। इटैलियन होने के बावजूद, वे भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के प्रेमी थे । बीसवीं सदी के महान भाषाविद के रूप में उनकी विश्वव्यापी पहचान है। एशियाटिक सोसायटी के विद्यासागर सभागार में, राजस्थानी प्रचारिणी सभा के संयुक्त तत्वावधान में, डा. लुइजी पै टेसिटोरी की 125वीं जन्म जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार का आरम्भ करते हुए डा. दिलिप कुमार घोष ने उक्त बातें कहीं।
बीज-भाषण देते हुए डा. श्यामसुन्दर भट्टाचार्य ने बताया कि इटली में रहते हुए डा. टेसिटोरी ने ‘तुलसी कृत रामचरितमानस पर वाल्मीकि रामायण का प्रभाव’ विषय पर शोध किया और डाक्टरेट प्राप्त की। इस शोध के सिलसिले में उन्होंने अन्य भारतीय भाषाओं में रची गई रामायणें भी देखीं। इसी दौरान, प्राचीन राजस्थानी भाषा ने उन्हें आकर्षित किया और वे भारत आ गए। यहाँ उन्होंने प्राकृत, अपभ्रंश, प्राचीन गुजराती और प्राचीन राजस्थानी भाषाओं के व्याकरण का पुनरुद्धार किया। 31 वर्ष की अल्पायु में ही वे चल बसे। इतनी कम उम्र में ही उन्होंने राजस्थानी भाषा के विकास और उसके साहित्य पर विराट कार्य किया। उनके चलते ही संसार को पता चला कि अधिकतर राजस्थानी साहित्य पांडुलिपियों में ही उपलब्ध है।
इटली में टेसिटोरी के जीवन की चर्चा करते हुए, कोलकाता में इटली के राजनयिक जोएल मेलकिओरी ने टेसिटोरी के वहाँ किए कार्य की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वहाँ भी टेसिटोरी की जो पाण्डुलिपियाँ हैं, उन पर यदि कोई कार्य करना चाहे और उनके देश के साथ अकादमिक रिश्ते बनाना चाहे तो उसे सहयोग देने के लिए वे हर वक्त तैयार हैं। अध्यक्ष, डा. पल्लव सेनगुप्त ने एशियाटिक सोसायटी के साथ टेसिटोरी के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि टेसिटोरी ने अध्ययन करते हुए बहुत ही कम आयु में भारत की प्राचीन व शास्त्रीय भाषाओं पर अधिकार अर्जित कर लिया। राजस्थानी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष रतन शाह ने राजस्थानी भाषा को अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने पर खेद प्रकट करते हुए कहा कि टेसिटोरी के कार्य ने राजस्थानी भाषा को एक जमीन दी। शाह ने सेमिनार के तीसरे सत्र का संचालन भी किया।
दूसरे सत्र में, विख्यात भाषा विज्ञानी प्रो. सत्यरंजन बनर्जी ने पूर्व एवं पश्चिम भारत में भाषाओं की विकास यात्रा की चर्चा करते हुए टेसिटोरी के कार्य और उनके महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने राजस्थानी समाज का आह्वान किया कि टेसिटोरी की राजस्थानी भाषा-साहित्य संबंधी अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का प्रकाशन करें। सभा के उपाध्यक्ष, प्रह्लाद राय गोयनका ने उन्हें इस हेतु यथासंभव सहयोग का वचन दिया। भारतीय विद्यामंदिर शोध संस्थान के डा. बाबूलाल शर्मा ने टेसिटोरी के बीकानेर प्रवास के दरम्यान किये गये उनके कार्यों की विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि वे राठौड़ों की तरह ही वेश-भूषा धारण किये रहते और राजस्थानी बोलियों में ही संवाद करते। वे केवल भाषाविद् ही नहीं, बल्कि पुरातत्ववेत्ता भी थे। हड़प्पा-मोहनजोदड़ों की खुदाई से पहले ही उन्होंने कालीबंगा क्षेत्र की खुदाई करवाई। दुनिया के समक्ष उन्होंने पाँच सौ से अधिक शिलालेखों के पाठान्तर प्रस्तुत किये।
तीसरे सत्र को सम्बोधित करते हुए, जुगलकिशोर जैथलिया ने राजस्थानी भाषा को मान्यता न मिलने की पृष्ठभूमि में सरदार पटेल की भूमिका बताते हुए कहा कि उन्होंने गुजरातियों को अपनी मातृभाषा हिन्दी लिखाने को नहीं कहा, बल्कि राजस्थानियों को जोर देकर कहा कि देश हित में आप अपनी मातृभाषा हिन्दी लिखायें। इसके चलते अपने लोगों ने मातृभाषा को ही भुला दिया। इसके दुष्परिणाम सामने हैं। अपनी पीढियाँ  – अपने इतिहास और संस्कृति से कट गयीं। अब समय आ गया है, जब हमें अपनी मातृभाषा के प्रति स्वाभिमान को जगाना है और टेसिटोरी के अधूरे रह गए कार्यों को पूरा करना है। तत्कालीन देश-काल-परिस्थितियों का चित्र प्रस्तुत करते हुए प्रमोद शाह ने राजस्थानी लोकसंस्कृति पर पं. रामनरेश त्रिपाठी द्वारा किये गए कार्य के आलोक में टेसिटोरी के शोधकार्यों की चर्चा की। टेसिटोरी ने भाषा व इतिहास की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ा। यह बताते हुए राजस्थान पत्रिका, कोलकाता के सम्पादकीय प्रभारी राजीव हर्ष ने कहा कि टेसिटोरी के कारण ही आज हम यह दावा करने में सक्षम हुए हैं कि राजस्थानी प्राचीन और समृद्ध भाषा है। कालीबंगा उनकी महत्वपूर्ण खोज थी। इसके माध्यम से उन्होंने भारत के दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता होने का प्रमाण जुटाया।

फोटो : देवज्योति द्वारा

-संजय बिन्नाणी

1 thought on “कोलकाता में याद किये गये डा. टेसिटोरी”

  1. भौत चोखी जाणकारी दी गई छै।
    म्हे एल. पी. टैस्सीटोरी और अन्य राजस्थानी भाषा साहित्य माथै शोध कार्य करबो चावां छां।
    अवसर दियो जाय-
    प्रहलाद सैनी -8233536217

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