हम सभी प्राय देवालाय जाते है, शांति प्राप्त करने के लिए व मन की शुद्धता के लिए जाना भी जरूरी है, जाना भी चाहिए लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी हे आप मानवालय व मूक पशु पक्षी शालाओं में भी समय निकाल कर जाएं। जहां दीन, दु:खी,गरीब रोगी और अनाथ निवास करते है और जहां उन्मुक्त वातावरण में मूक पशु पक्षी अपना आश्रय तलाशते है। अस्पतालो में असाध्य रोगी बिना इलाज के दम तोड़ देते है, अंतिम संस्कार के लिए लोगो के पास कफन के लिए भी पैसा नहीं होता है ऐसे अनाथ लोगो की सहायता के लिए उठा आपका एक भी कदम आपके प्रारब्ध के कर्मो को गति प्रदान करेगा।
महाभारत का युद्व चाहते थे तो श्रीकृष्ण अकेले जीत सकते थे लेकिन उन्होने अर्जुन को सारथी बनाया ताकि जीत का श्रेय उसे मिल सके, ठीक उसी तरह दीन दुखी की सेवा का भार प्रभु ने हमें सौंपा है तो फिर हमें वह अवश्य करना चाहिए। वे लोग पुण्यशाली होते है जिनके मन में दरिद्रो की सहायता का संकल्प उठता है, वे किसी के दुख को देखकर स्वयं भी दुख का अनुभव करते है और फिर इस हेतु निवारण का प्रयास भी करते हैे। सही अर्थाे में परमात्मा के वे स्वयं स्वरूप होते है जिनके मन में करूणा का भाव जगता है। कहा भी गया है प्रार्थना करने वाले हाथो से सेवा करने वाले हाथ अधिक पवित्र माने गए है।
विडंबना यह भी है कि वर्तमान अर्थ प्रधान युग में प्रसिद्धि पाने की चाहत रख कर की गई सेवा केवल अपने अंह को जागृत करने के सिवा और कुछ नहीं हो सकती। कहीं ऐसा ना हो कि किए गए सेवा कार्यो का बखान कर आप किसी की दीनता व असहायता को बोझ तले दबा रहे हो। सेवा का सच्चा प्रतिफल सर्वशक्तिमान ही तय करता है। आवश्यक नहीं है कि सेवा समुह में की जाएं आप स्वयं ही सेवा करने के लिए सक्षम है। आइए सेवा के कार्यो में और अधिक निस्वार्थता के साथ जुडऩे का प्रयास निरंतर जारी रखे। अभी भी समय शेष है,पीडि़त आपकी ओर आशा की नजर से देख रहे है। नजर ना छुपाए।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
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