परेड के बाद भीड़ में खो गए वो बहादुर बच्चे

क्या बच्चों की बहादुरी का सिला महज राजपथ की सैर और कुछ समारोहों में उनका स्वागतभर है? पिछले साल वीरता पुरस्कार जीतने वाले बच्चों को देखकर तो यही लगता है।

उन्हें गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेने के अलावा और भी कई उम्मीदें थीं। लेकिन स्कूल में एक अदद दाखिले तक के लिए उन्हें धक्के खाने पड़े। उनके लिए स्पेशल सुविधाओं की घोषणा सिवाय कोरे वादे के कुछ नहीं साबित हुई। बात करते हैं पिछले साल के राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार विजेता उमाशंकर की। दिल्ली के सोनिया विहार इलाके में परिवार संग रहने वाले उमाशंकर पिछले साल पुरस्कार हासिल करने के बाद 10वीं बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गए। नतीजे अच्छे आए तो वीरता प्रमाण पत्र लेकर राजधानी के एक नामचीन स्कूल में 11वीं में दाखिले के लिये पहुंचे पर स्कूल प्रशासन ने प्रमाण पत्र देखने तक की जहमत नहीं उठाई। बाद में जब नेवी स्कूल के प्रिंसिपल को इस बारे में पता चला, तब जाकर उन्हें दाखिला मिल पाया। उमाशंकर ने जागरण को बताया कि पुरस्कार मिलने के दौरान जिस तरह उनसे बड़े-बड़े वादे किए गए थे, सब झूठे साबित हुए। ताउम्र पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता, देशभर में रेल यात्रा के लिए रियायत समेत चिकित्सीय सहायता की बातें कही गई थीं। सुविधा प्राप्त करने के लिए जब भी कोशिश की, किसी ने तवच्जो नहीं दी। इसी तरह आजमगढ़ के ओमप्रकाश को भी पिछले साल राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिला था। आगजनी की घटना में अपने साथियों की जान बचाने के दौरान उनका चेहरा व हाथ बुरी तरह झुलस गया था। उनकी हालत देख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप से चेहरे की सर्जरी कराने की बात हुई थी। सर्जरी कराने के लिए महीने भर बाद ओमप्रकाश पिता के साथ दिल्ली आए। दस दिन बिताने के बाद भी इस दिशा में कोई पहल न देख घर लौट गए। फिलहाल वह अपने गांव में सामान्य बच्चे की तरह जिंदगी जी रहे हैं। बुलंद हौसले और अदम्य साहस का परिचय देने वाले बच्चों को गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रतिवर्ष राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। 2011 में इस पुरस्कार के लिए देशभर के चार बच्चों का चयन हुआ था। पिछले साल गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने उन्हें पुरस्कृत किया था। इसके बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में वह शामिल हुए थे।

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