यूपी बजट: उम्मीदों के पुल और जोखिम की सड़क

national-up-budget-201314-infrastructure 2013-2-20

लखनऊ (अंशुमान तिवारी)। तीन सौ पुल व फ्लाई ओवर, दसियों राजमार्ग, सैकड़ों सड़कों, लखनऊ की मेट्रो और ढेर सारी सरकारी इमारतें! लगभग 32000 करोड़ रुपये का इमारती निर्माण। यह अभूतपूर्व कंस्ट्रक्शन बजट है। तरक्की दिखाने का दारोमदार अब पुलों के खंभों और सड़कों व इमारतों पर होगा, क्योंकि भत्ते और लैपटॉप तो इतनी बड़ी आबादी में कहीं गुम हो गए हैं। इमारती निर्माण पर टिका विकास यकीनन दिखता है, लेकिन इसके पीछे भ्रष्टाचार भी निकलता है और फिर पुलों-सड़कों के लिए किसानों से जमीनें भी तो चाहिए। अर्थात उम्मीदों के इस बजट में जोखिम कम नहीं है।

यह बजट उत्तर प्रदेश को एक विशाल कंस्ट्रक्शन बाजार में बदलने की कुव्वत रखता है। करीब 9000 करोड़ रुपये के पुल, 2500 करोड़ रुपये की शहरी व ग्रामीण सड़कें, निजी भागीदारी में बनने वाले राजमार्ग व एक्सप्रेस वे, 1000 करोड़ रुपये के शहरी निर्माण, 200 ग‌र्ल्स हॉस्टल, स्टेडियम आदि-आदि.प्रदेश सरकार की ज्यादातर पूंजी इन्हीं कामों में जाएगी।

भवन निर्माण का मतलब होता है ढेर सारा निवेश, असंख्यी इमारतें, बुनियादी उद्योगों के लिए जोरदार खपत और अच्छा रोजगार.लेकिन साथ में ढेर सारे ठेकेदार भी। निर्माण आधारित ग्रोथ में पारदर्शिता बड़ा सवाल बन गई है। उप्र क्या पूरे देश का इतिहास इस मामले में दागदार है। निजी क्षेत्र से भागीदारी यानी पीपीपी निर्माण का नया लोकप्रिय मॉडल है। हवाई अड्डों से लेकर एक्सप्रेस वे इसी से निकल रहे हैं, लेकिन बाद में इन्हीं से सीएजी की रिपोर्टे भी निकलती हैं, जो कंपनियों और सरकारों की मिलीभगत के किस्से सुनाती हैं।

हजारों करोड़ के खर्च को साफ-सुथरा रखना! . जोखिम भरपूर है। विकास के ताजा प्रश्न पत्र में जमीनों का जुगाड़ सबसे कठिन सवाल हैं। निर्माण हवा में नहीं जमीनों पर होते हैं और उनका अधिग्रहण अब विस्फोटक हो चला है। विकास के लिए निवेशक और आवंटन तो मिल जाते हैं, जमीनें मुश्किल व कीमती हो चली हैं। भट्टा पारसोलों, ग्रेटर नोएडा, सिंगुरों की रोशनी में जमीनों का सरकारी अधिग्रहण गहरी सियासी सूझ-बूझ मांगता है।

निर्माण अभियान से पहले उप्र को नया भूमि अधिग्रहण कानून चाहिए। इसके बाद होने वाले अधिग्रहण अखिलेश के कौशल की बड़ी परीक्षा लेंगे। महंगे अधिग्रहण लागत भी बढ़ाएंगे। खर्च में पारदर्शिता और पर्याप्त भूमि की आपूर्ति ऐसे लक्ष्य हैं, जिनके लिए बजट में कोई आवंटन नहीं हो सकता। बजट से निकला उम्मीदों का निर्माण अगर इन वजहों से दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ तो उप्र में विकास के दस्तखत नजर आ सकते हैं, जो 2014 में बहुत काम आएंगे।

error: Content is protected !!